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गुरु जी के बचन, “ना कोई हिंदू न मुसलमान” को जब काजी ने सुना तो उसने गुरु जी से इसका भाव पूछा| गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) ने कहा इस समय अपने धरम के अनुसार चलने वाला ना कोई सच्चा हिंदू है ना ही कोई अपने दीन मजहब के अनुसार चलने वाला सच्चा मुसलमान है|

एक दिन महिता जी ने गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) को 20 रुपए देकर सच्चा सौदा करके लाने को कहा तथा भाई बाले को भी साथ भेज दिया| गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) पिता जी को सति बचन कह कर 20 रूपए लेकर तथा भाई बाले को साथ लेकर सच्चे सौदे के लिए निकल पड़े|

एक दिन दुपहर ढलने के समय गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) पेड़ की छाया के नीचे चादर बिछा कर लेट गए| उस वक्त सब वृक्षों की छाया ढल चुकी थी पर जहां गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) लेटे हुए थे उस वृक्ष का परछावां ज्यों का त्यों खड़ा था| दो घडी उपरांत अपने खेतों की रखवाली करता राये बुलार आ उधर आ गया गया|

गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) अब रोजाना ही पशुओं को जंगल जूह में ले जाते| एक दिन वैसाख के महीने में दुपहर के समय पशुओं को छाओं के नीचे बिठा कर गुरु जी लेट गए| सूरज के ढलने के साथ वृक्ष कि छाया भी ढलने लगी| आप के मुख पर सूरज कि धूप देखकर एक सफ़ेद साँप अपने फन के साथ छाया करके बैठ गया|

गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) को चुपचाप व बिना किसे काम के घर में लेटे रहते देख महिता जी ने उन्हें किसे काम धंधे में लगाने कि सोची| पिता का कहना मान कर अगले ही दिन गुरु जी गाये भेसों को चराने ले गए| तीन चार दिन तो सब ठीक चलता रहा, सुबह पशुओं को बाहर ले जाते व सांयकाल वापिस घर ले आते|

ग्रीष्म ऋतु के समाप्त होते ही सावन-भादो आ गई| महिता कालू जी ने उचित समय को देखते हुए फसल बोने की सोची|

श्री गुरु नानक देव जी खेत की रखवाली करने खेत में जाते| परन्तु उनकी सारी खेती पशुओं ने चर ली| क्योंकि गुरु जी पशुओं को बाहर न निकालते|

राए बुलार ने महिता कालू जी को कहा कि आप खुश किस्मत हो आपको घर नानक जैसा पुत्र पैदा हुआ है| इन्हें आज से कटु वचन न कहना| मेरी तरफ से एक सुन्दर पोशाक लेकर जाओ|

श्री गुरु नानक देव जी को एकांत में लेटे देखकर माता तृप्ता कहने लगी – पुत्र! तुम बीमारो की तरह चुपचाप क्यों लेटे रहते हो? घर का कोई काम-काज दिल लगा कर किया करो|