अध्याय 164
1 [स]
तस्मिंस तथा वर्तमाने नराश्वगजसंक्षये
दुःशासनॊ महाराज धृष्टद्युम्नम अयॊधयत
“Dhritarashtra said, ‘When Pandya had been slain and when that foremostof heroes, viz., Karna was employed in routing and destroying the foe,what, O Sanjaya, did Arjuna do in battle?
अठारह-दिवसीय युद्ध समाप्त हो चूका था| पांडव धृतराष्ट्र के पास गए और उनके चरणों पर गिरकर क्षमा माँगी| धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को गले लगा लिया, फिर भीम को बुलाया| भीम के महाराज के पास पहुंचने से पूर्व ही कृष्ण ने शीघ्रता से मनुष्य के आकार का एक लोहे का पुतला, जन्म से अंधे पर अत्यधिक शक्तिशाली, धृतराष्ट्र के हाथों में पकड़ा दिया|
1 [युधिस्ठिर]
बान्धवाः कर्म वित्तं वा परज्ञा वेह पितामह
नरस्य का परतिष्ठा सयाद एतत पृष्ठॊ वदस्व मे
1 [ज]
परभास तीर्थं संप्राप्य वृष्णयः पाण्डवास तथा
किम अकुर्वन कथाश चैषां कास तत्रासंस तपॊधन
ढाई हजार साल पहले की घटना है| बुद्ध एक गांव में ठहरे थे| एक आदमी उनके पास आया और बोला – “भंते, आप तीस साल से लोगों को शांति, सत्य और मोक्ष की बात समझा रहे हैं, लेकिन कितने लोग हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्त हो गया?”
Vaisampayana said, “When Kunti’s son, king Yudhishthira the just,remained speechless after listening to his brothers who were tellingthese truths of the Vedas, that foremost of women, viz.,
“Bhrigu said, ‘Forest recluses seeking the acquisition of virtue go tosacred waters and rivers and springs, and undergo penances in lone andsecluded woods abounding with deer and buffaloes and boars and tigers andwild elephants.