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बात प्राचीन महाभारत काल की है। महाभारत के युद्ध में जो कुरुक्षेत्र के मैंदान में हुआ, जिसमें अठारह अक्षौहणी सेना मारी गई, इस युद्ध के समापन और सभी मृतकों को तिलांज्जलि देने के बाद पांडवों सहित श्री कृष्ण पितामह भीष्म से आशीर्वाद लेकर हस्तिनापुर को वापिस हुए तब श्रीकृष्ण को रोक कर पितामाह ने श्रीकृष्ण से पूछ ही लिया, “मधुसूदन, मेरे कौन से कर्म का फल है जो मैं सरसैया पर पड़ा हुआ हूँ?”

एक बार की बात है एक उत्साही युवक रामकृष्ण परमहंस की सेवा में गया| वह रामकृष्ण परमहंस के कदमों में झुक गया| उसने भक्तिभाव से परमहंस से प्रार्थना की, “महात्मन्! मुझे अपना चेला बना लो| मुझे गुरुमंत्र की दीक्षा दीजिए|”