अध्याय 13
1 [वै]
भॊजाः परव्रजिताञ शरुत्वा वृष्णयश चान्धकैः सह
पाण्डवान दुःखसंतप्तान समाजग्मुर महावने
1 [वै]
भॊजाः परव्रजिताञ शरुत्वा वृष्णयश चान्धकैः सह
पाण्डवान दुःखसंतप्तान समाजग्मुर महावने
किसी वन में भासुरक नाम का एक सिंह प्रतिदिन अनेक जीवों को मारा करता था| एक दिन जंगल के सभी जीव मिलकर उसके पास पहुँचे और उससे निवेदन किया- “वनराज! प्रतिदिन अनेक प्राणियों को मारने से क्या लाभ? आपका आहार तो एक जीव से पूर्ण हो जाता है, इसलिए क्यों न हम परस्पर कोई ऐसी प्रतिज्ञा कर लें कि आपको यहाँ बैठे-बैठे ही आपका भोजन मिल जाए|
“Sanjaya said, ‘Dhananjaya, with his Gandiva, frustrated the purpose ofthose unreturning heroes struggling in battle and striking their foes.
“Yudhishthira said, ‘If a Kshatriya desires to subjugate anotherKshatriya in battle, how should the former act in the matter of thatvictory? Questioned by me, do thou answer it.’
बहुत समय पहले एक ब्राह्मण रहता था| वह भीख मांगकर गुजर-बसर करता था| कभी-कभी तो उसे कई दिन भूखा रहना पड़ता| कभी मुश्किल से एक समय का खाना जुटा पाता| मगर एक दिन उसकी किस्मत चमकी| कहीं से उसे एक हंडी भर आटा मिल गया| इतना आटा पाकर ब्राह्मण खुशी से फूला न समाया| वह हंडी लेकर घर पहुंचा और उसे अपने बिस्तर के पास लटकाकर आराम से लेट गया|
“Yudhishthira said, ‘Thou hast, O grandsire, discoursed to me on the giftof kine that is fraught with great merit. In the case of kings observantof their duties, that gift is most meritorious.
1 [य]
किं शीलः किं समाचारः किं विद्यः किं परायनः
पराप्नॊति बरह्मणः सथानं यत परं परकृतेर धरुवम
1 [बर]
नेदम अल्पात्मना शक्यं वेदितुं नाकृतात्मना
बहु चाल्पं च संक्षिप्तं विप्लुतं च मतं मम
“Bhishma said, ‘After the battle had ceased, my charioteer, well-skilledin such operations, drew out from his own body, from the bodies of mysteeds, and from my body as well, the arrows that struck there.