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बात उस समय की है जब राज्य की व्यवस्था के लिये शत्रुध्न को मथुरा में और लव-कुश आदि राजकुमारों को भिन्न-भिन्न स्थानों में भगवान् श्रीराम ने नियुक्त कर रखा था|

श्रीहनुमानजी आजम नैष्ठिक ब्रह्मचारी, व्याकरणके महान् पण्डित, ज्ञानिशिरोमणि, परम बुद्धिमान् तथा भगवान् श्रीरामके अनन्य भक्त हैं| ये ग्यारहवें रुद्र कहे जाते हैं|