शुद्ध हृदय की प्रार्थना
समर्थ रामदास ऊंचे दर्जे के संत हुए हैं| वे भिक्षा मांगकर अपना पेट भर लेते थे और भगवान की भक्ति में लीन रहते थे|
समर्थ रामदास ऊंचे दर्जे के संत हुए हैं| वे भिक्षा मांगकर अपना पेट भर लेते थे और भगवान की भक्ति में लीन रहते थे|
1 [धौम्य]
उदीच्यां राजशार्दूल दिशि पुण्यानि यानि वै
तानि ते कीर्तयिष्यामि पुण्यान्य आयतनानि च
1 [गुरु]
अत्रॊपायं परवक्ष्यामि यथावच छास्त्र चक्षुषा
तद विज्ञानाच चरन पराज्ञः पराप्नुयात परमां गतिम
“Yudhishthira said, ‘Whom do the eternal Brahmanas strictly observingreligious rites call a proper object of gifts? Is a Brahmana that bearsthe symbols of the order of life he follows to be regarded as such or onewho does not bear such indications is to be so regarded?'[202]
एक सुबह रामदीन अपने वृद्ध पिता को बैलगाड़ी में बिठाकर कहीं ले जा रहा था कि उसका पुत्र बोला, ‘पिताजी, आप दादाजी को कहाँ ले जा रहे है?’
“Bhishma said, ‘Having settled this in his mind, the Salmali. in sorrow,himself caused all his branches, principal and subsidiary, to be cut off.
“Dhritarashtra said,–‘The names of rivers and mountains, O Sanjaya, asalso of provinces, and all other things resting on the earth, and theirdimensions, O thou that are acquainted with the measures of things of theearth in its entirety and the forests, O Sanjaya, recount to me indetail.’
दार्शनिक कन्फ्यूशियस के एक शिष्य को ध्यान लगाने और मन पर संयम स्थापित करने में कठिनाई होती थी। तब उन्होंने समझाया कि अपने को पूरी तरह से आत्मा में डुबो दो, तभी तुममें संयम आएगा।
“Karna said, ‘I behold all these blessed ones, looking as if alarmed andpanic-struck and unresolved and unwilling to fight.