Chapter 51
Duryodhana said,–‘O sinless one, listen to me as I describe that largemass of wealth consisting of various kinds of tribute presented untoYudhishthira by the kings of the earth.
Duryodhana said,–‘O sinless one, listen to me as I describe that largemass of wealth consisting of various kinds of tribute presented untoYudhishthira by the kings of the earth.
1 [धृ]
सवेनच छन्देन नः सर्वान नावधीद वयक्तम अर्जुनः
न हय अस्या समरे मुच्येतान्तकॊ ऽपय आततायिनः
“Dhritarashtra said, ‘Exceedingly difficult of accomplishment was thatfeat, O Sanjaya, which was achieved by Bhima who caused the mighty-armedKarna himself to measure his length on the terrace of his car.
1 [ज]
पितामहस्य मे यज्ञे धर्मपुत्रस्य धीमतः
यद आश्चर्यम अभूत किं चित तद भवान वक्तुम अर्हति
एक राजा था| उस पर उसके दुश्मन ने हमला किया| राजा हार गया और अपने राज्य से भागकर एक गुफा में जा छिपा| अपना राज्य पाने की उसे कोई आशा न रही| गुफा में बैठा वह बीते दिनों की याद करता और बेचैन होता|
1 [य]
पितामह महाप्राज्ञ युधि सत्यपराक्रम
शरॊतुम इच्छामि कार्त्स्न्येन कृष्णम अव्ययम ईश्वरम
“Vasudeva said, ‘Concentrating his mind, O Yudhishthira. the regenerateRishi Upamanyu, with hands joined together in reverence uttered thisabstract of names (applying to Mahadeva), commencing from the beginning.’
कंचनपुर के निकट घने जंगल में एक धूर्त साधु वेशधारी रहता था| कंचनपुर का जागीदार रामप्रताप उसकी खूब सेवा किया करता था| साधु वेशधारी पर उसका अटूट विश्वास था|