अध्याय 27
1 [स]
धर्मे नित्या पाण्डव ते विचेष्टा; लॊके शरुता दृश्यते चापि पार्थ
महास्रावं जीवितं चाप्य अनित्यं; संपश्य तवं पाण्डव मा विनीनशः
1 [स]
धर्मे नित्या पाण्डव ते विचेष्टा; लॊके शरुता दृश्यते चापि पार्थ
महास्रावं जीवितं चाप्य अनित्यं; संपश्य तवं पाण्डव मा विनीनशः
“Markandeya said, ‘Having pondered over these words (of Narada) about hisdaughter’s marriage, the king began to make arrangements about thenuptials.
एक बार एक गांव में सूखा पड़ा। सारे तालाब और कुएं सूख गए। तब लोगों ने एक सभा की। उस सभा में सभी ने एक स्वर में तय किया कि गांव के बाहर जो शिवजी का मंदिर है, वहां चलकर भगवान से वर्षा करने के लिए सामूहिक प्रार्थना करें। अगले दिन सुबह होते ही गांव के सभी लोग शिवालय की ओर चल दिए। बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरुष सभी जोश से भरे हुए जा रहे थे। इन सभी में एक बालक ऐसा था, जो हाथ में छाता लेकर चल रहा था। सभी उसे देखकर उसका उपहास उड़ाने लगे।
काम मेरा है चाहत करूं दीद की, रुख़ से पर्दा हटाना तेरा काम है
काम है मेरा साँई तुझे देखना, आगे जलवा दिखाना तेरा काम है
“Manu said, ‘As in a dream this manifest (body) lies (inactive) and theenlivening spirit in its subtile form, detaching itself from the former,walks forth after the same manner, in the state called deep slumber (ordeath), the subtile form with all the senses becomes inactive and the
Dhritarashtra said, “When mine and the hostile hosts were thus formedinto battle array, how did the foremost of smiters begin to strike?”
Vaishampayana said: “Then Daruka and Keshava and Vabhru left that spot,following in the wake of Rama (for discovering his retreat).
“Sauti said, ‘That Brahmana of rigid vows then wandered over the earthfor a wife but a wife found he not. One day he went into the forest, andrecollecting the words of his ancestors, he thrice prayed in a faintvoice for a bride.
पांडवों के निष्कासन की सूचना मिलते ही राजा द्रुपद अपने पुत्र धृष्टदयुम्न के साथ अपनी पुत्री से मिलने आए|