अध्याय 148
1 [ष]
तस्मात ते ऽहं परवक्ष्यामि धर्मम आवृत्तचेतसे
शरीमान महाबलस तुष्टॊ यस तवं धर्मम अवेक्षसे
पुरस्ताद दारुणॊ भूत्वा सुचित्रतरम एव तत
1 [ष]
तस्मात ते ऽहं परवक्ष्यामि धर्मम आवृत्तचेतसे
शरीमान महाबलस तुष्टॊ यस तवं धर्मम अवेक्षसे
पुरस्ताद दारुणॊ भूत्वा सुचित्रतरम एव तत
“Markandeya said, ‘Afflicted with grief at the abduction of Sita, Ramahad not to go much further before he came upon Pampa–that lake whichabounded with lotuses of various kinds.
“Yudhishthira said, ‘By following what conduct, O thou that artconversant with all courses of conduct, did Janaka, the ruler of Mithilaversed in the religion of Emancipation, succeed in attaining toEmancipation, after casting off all worldly enjoyments?’
“Duryodhana said, ‘In all the worlds Vasudeva is spoken of as the SupremeBeing. I desire, O Grandsire, to know his origin and glory.”
एक भिखारी भीख मांगने निकला। उसका सोचना था कि जो कुछ भी मिल जाए, उस पर अधिकार कर लेना चाहिए। एक दिन वह राजपथ पर बढ़ा जा रहा था। एक घर से उसे कुछ अनाज मिला। वह आगे बढ़ा और मुख्य मार्ग पर आ गया। अचानक उसने देखा कि नगर का राजा रथ पर सवार होकर उस ओर आ रहा है। वह सवारी देखने के लिए खड़ा हो गया, लेकिन यह क्या? राजा की सवारी उसके पास आकर रुक गई।
“Vaisampayana said, ‘Then Devaki’s son Janardana of universal knowledgeaddressed king Yudhishthira who stood there with his brothers, saying,’In this world, O sire, Brahmanas are always the objects of worship withme.
“Arjuna said, ‘O Bhima, thou art my elder brother and, therefore, mysenior and preceptor. I dare not say anything more than what I havealready said.
बहुत पुरानी बात है| शांतनु नाम के एक राजा हस्तिनापुर में राज्य करते थे| उन्हें शिकार खेलना अति प्रिय था| एक दिन राजा शांतनु ने नदी के तट पर एक बहुत सुन्दर स्त्री को देखा| वह कोई साधरण नारी नहीं बल्कि देवी गंगा थी| परन्तु राजा शांतनु इस बात से अनभिज्ञ थे|