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“Vaisampayana said, ‘The excellent monarch Yayati, the son of Nahusha,having received Puru’s youth, became exceedingly gratified. And with ithe once more began to indulge in his favourite pursuits to the fullextent of his desires and to the limit of his powers, according toseasons, so as to derive the greatest pleasure therefrom.

राजा हरिश्चंद्र के शब्द सुनकर तपस्वी उठ खड़ा हुआ और क्रोधित होता हुआ बोला, “ठहर जा दुरात्मन! अभी तुझे तेरे अहंकार का मजा चखाता हूं|”

एक बार राजा श्रोणिक शिकार करने जंगल में गए। वहां उन्हें यशोधर मुनि तपस्या करते हुए दिखे। राजा को लगा कि उनकी वजह से उन्हें शिकार करने को नहीं मिलेगा। तभी सामने एक लंबा सांप आता दिखाई दिया।