सत्य का आचरण
एक समय की बात है| एक छोटा-सा बालक अपनी अकेली विधवा माँ को छोड़कर कोई रोजगार-धंधा करने के लिए विदेश जा रहा था|
एक समय की बात है| एक छोटा-सा बालक अपनी अकेली विधवा माँ को छोड़कर कोई रोजगार-धंधा करने के लिए विदेश जा रहा था|
“Vasudeva said, “O scion of Bharata’s race, salvation is not attained byforegoing the external things (like kingdom, etc), it is only attained bygiving up things which pander to the flesh (body).
“Janamejaya said, ‘O adorable one, I desire to hear the histories ofthose kings who were descended from Puru. O tell me of each as he waspossessed of prowess and achievements. I have, indeed, heard that inPuru’s line there was not a single one who was wanting in good behaviourand prowess, or who was without sons.
1 [सुपर्ण]
इयं विवस्वता पूर्वं शरौतेन विधिना किल
गुरवे दक्षिणा दत्ता दक्षिणेत्य उच्यते ऽथ दिक
“Yudhishthira said, ‘O foremost of monarchs, I wish to know how it wasthat great and unparalleled misery had to be endured by the illustriousIndra together with his queen.’
कुछ पल बाद राजा ने ब्राम्हण की ओर देखा और कहा, “विप्रवर! आपकी जो भी अभिलाषा हो निस्संकोच मुझसे मांग लें| मैं अपने वचन से पीछे नहीं हटूंगा|”
“Markandeya said, ‘When, O Yudhishthira, all this mystery of salvationwas explained to that Brahmana, he was highly pleased and he saidaddressing the fowler,
एक बार संत राबिया एक धार्मिक पुस्तक पढ़ रही थीं। पुस्तक में एक जगह लिखा था, शैतान से घृणा करो, प्रेम नहीं। राबिया ने वह लाइन काट दी। कुछ दिन बाद उससे मिलने एक संत आए। वह उस पुस्तक को पढ़ने लगे। उन्होंने कटा हुआ वाक्य देख कर सोचा कि किसी नासमझ ने उसे काटा होगा। उसे धर्म का ज्ञान नहीं होगा। उन्होंने राबिया को वह पंक्ति दिखा कर कहा, जिसने यह पंक्ति काटी है वह जरूर नास्तिक होगा।
स्वामी दयानंद के जीवन की एक सत्य-कथा है| स्वामी जी के उपदेशों की चर्चा सुनकर एक प्रतिष्ठित मुसलमान भी उनके पास गया, परंतु उसका मुख हमेशा उदास रहता था| एक दिन स्वामी जी ने कारण पूछा| उसने उत्तर दिया कि मेरे कई बच्चे हुए हैं, परंतु जीता कोई नहीं, इसलिए मन सदा उदास रहता है|