Chapter 187
“Then the virtuous king Yudhishthira in all humility again enquired ofthe illustrious Markandeya, saying, ‘O great Muni, thou hast seen manythousands of ages pass away.
“Then the virtuous king Yudhishthira in all humility again enquired ofthe illustrious Markandeya, saying, ‘O great Muni, thou hast seen manythousands of ages pass away.
एक बार भरत, लक्ष्मण और शत्रुध्न-तीनों भाइयों ने माता सीता जी से मिलकर विचार किया कि हनुमान जी हमें रामजी की सेवा करने का मौका ही नहीं देते, पूरी सेवा अकेले ही किया करते हैं| अतः अब रामजी की सेवा का पूरा काम हम ही करेंगे, हनुमान जी के लिए कोई भी काम नहीं छोड़ेंगे| ऐसा विचार करके उन्होंने सेवा का पूरा काम आपस में बाँट लिया|
“Brahmana said, ‘From the unmanifest first sprang Mahat (the Great Soul)endued with great intelligence, the source of all the qualities. That issaid to be the first creation.
1 [स]
परयाते तव सैन्यं तु युयुधाने युयुत्सया
धर्मराजॊ महाराज सवेनानीकेन संवृतः
परायाद दरॊण रथप्रेप्सुर युयुधानस्य पृष्ठतः
1 [य]
मुह्यामीव निशम्याद्य चिन्तयानः पुनः पुनः
हीनां पार्थिव संघातैः शरीमद्भिः पृथिवीम इमाम
1 [जनम]
वसमानेषु पार्थेषु वने तस्मिन महात्मसु
धार्तराष्ट्रा महेष्वासाः किम अकुर्वन्त सत्तम
1 [भीस्म]
नित्यॊद्युक्तेन वै राज्ञा भवितव्यं युधिष्ठिर
परशाम्यते च राजा हि नारीवॊद्यम वर्जितः
“‘Vasishtha said, I have thus far discoursed to thee on the Sankhyaphilosophy. Listen now to me as I tell thee what is Vidya (knowledge) andwhat is Avidya (Ignorance), one after the other.