अध्याय 170
1 [बराह्मणी]
नाहं गृह्णामि वस तात दृष्टीर नास्ति रुषान्विता
अयं तु भर्गवॊ नूनम ऊरुजः कुपितॊ ऽदय वः
1 [बराह्मणी]
नाहं गृह्णामि वस तात दृष्टीर नास्ति रुषान्विता
अयं तु भर्गवॊ नूनम ऊरुजः कुपितॊ ऽदय वः
1 [भीस्म]
सुदक्षिणस तु काम्बॊजॊ रथ एकगुणॊ मतः
तवार्थ सिद्धिम आकाङ्क्षन यॊत्स्यते समरे परैः
“Dhritarashtra said, ‘Whom hast thou, O Sanjaya, seen to have, fromaffection, arrived there, and who will, on behalf of the Pandavas, fightmy son’s forces?’
“Vaisampayana continued, ‘On hearing that the heroic sons of Pandu enduedwith excess of energy had become so mighty, king Dhritarashtra becamevery miserable with anxiety.
एक बार युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म ने पूछा, “पितामह ! क्या आपने कोई ऐसा पुरुष देखा या सुना है, जो एक बार मरकर पुन: जी उठा हो?”
Vaisampayana said, “Then when the night had been spent, Dhananjaya,together with his brothers, paid homage unto Yudhishthira the just.
“Vaisampayana said, ‘Having heard these words of his son Vasudeva, thatdescendant of Sura, of righteous soul, casting off his grief, madeexcellent obsequial offerings (unto Abhimanyu).
लहसुन में कई छोटी-छोटी पुतियां होती हैं| इन पूतियों पर पतला खोल चढ़ा होता है| जब तक पूतियों पर यह खोल चढ़ा रहता है, तब तक यह खराब नहीं होतीं| लहसुन को अमृततुल्य बताया गया है क्योंकि इसमें काफी गुण होते हैं|
बादशाह अकबर ने बीरबल से कहा – “जिन लोगों के नाम अथवा उपनाम के अन्त में वान या बान लगा होता है वे लोग आमतौर पर कोई छोटा काम करने वाले ही होते हैं – जैसे दरबान,कोचवान आदि| तुम्हारा क्या विचार है इस बारे में बीरबल?”