अध्याय 138
1 [धृ]
राजपुत्रैः परिवृतस तथामात्यैश च संजय
उपारॊप्य रथे कर्णं निर्यातॊ मधुसूदनः
“Dhritarashtra said, ‘Tell me what may be done by a person that issleepless and burning with anxieties, for thou alone amongst us, O child,art versed in both religion and profit.
“Markandeya continued, ‘The Deity then said, ‘O Brahmana, the gods evendo not know me truly! As however, I have been gratified with thee, I willtell thee how I created the universe!
एक भक्त इमली के वृक्ष के नीचे बैठे कर भगवान् का भजन कर रहा था| एक दिन वहाँ नारद जी महाराज आ गये| उस भक्त ने नारद जी कहा कि आप इतनी कृपा करें की जब भगवान् के पास जाएं तब उनसे पूछ ले कि वे मुझे कब मिलेंगे? नारद जी भगवान् के पास गये और पूछा कि अमुक स्थान पर एक भक्त इमली के वृक्ष के नीचे बैठा है और भजन कर रहा है, उसको आप कब मिलेंगे?
“Brahmana said, ‘The qualities are incapable of being declared ascompletely separate from one another.