अध्याय 161
1 [स]
उलूकस्य वचः शरुत्वा कुन्तीपुत्रॊ युधिष्ठिरः
सेनां निर्यापयाम आस धृष्टद्युम्नपुरॊगमाम
1 [स]
उलूकस्य वचः शरुत्वा कुन्तीपुत्रॊ युधिष्ठिरः
सेनां निर्यापयाम आस धृष्टद्युम्नपुरॊगमाम
“Duryodhana said, ‘Fear not, O king. Nor shouldest thou grieve for us. Omonarch, O lord, we are quite able to vanquish the foe in battle.
“Vaisampayana continued, ‘Beholding the Pandavas and the son ofDhritarashtra accomplished in arms, Drona thought the time had come whenhe could demand the preceptorial fee.
पाण्डव अपनी मां कुंती के साथ इधर से उधर भ्रमण कर रहे थे| वे ब्राह्मणों का वेश धारण किए हुए थे| भिक्षा मांगकर खाते थे और रात में वृक्ष के नीचे सो जाया करते थे| भाग्य और समय की यह कैसी अद्भुत लीला है| जो पांडव हस्तिनापुर राज्य के भागीदार हैं और जो सारे जगत को अपनी मुट्ठी में करने में समर्थ हैं, उन्हीं को आज भिक्षा पर जीवन-यापन करना पड़ रहा है|
“Arjuna said, ‘O Bharata, by the grace of that god of gods the SupremeSoul, Tryamvaka, I passed the night at that place. And having passed thenight, when I had finished the morning rituals, I saw that foremost ofthe Brahmanas whom I had seen before.
“Vasudeva said, ‘O thou of Vrishni’s race, I have repeatedly heard menspeaking of the wonderful battle (between the Kurus and the Pandavas).
बीरबल को तम्बाकू खाने का शौक था, किंतु बादशाह अकबर को यह पसंद न था| एक दिन बादशाह अकबर तथा बीरबल सैर कर रहे थे| वहीं एक गधा भी चर रहा था|