तुम मेरी राखो लाज हरि
तुम मेरी राखो लाज हरि
“Yudhishthira said, ‘Without abandoning the domestic mode of life, Oroyal sage of Kuru’s race, who ever attained to Emancipation which is theannihilation of the Understanding (and the other faculties)?
1 [वैषम्पायन]
ततॊ विसर्जयाम आस सर्वाः परकृतयॊ नृपः
विविशुश चाभ्यनुज्ञाता यथा सवानि गृहाणि च
1 And he made the altar of burnt-offering of acacia wood: five cubits was the length thereof, and five cubits the breadth thereof, foursquare; and three cubits the height thereof.
मातादीन के पाँच पुत्र थे-शिवराम, शिवदास, शिवपाल, शिवसहाय और शिवपूजन| ये पाँचों लड़के परस्पर झगड़ा किया करते थे| छोटी-सी बात पर भी आपस में ‘तू-तू’, ‘मैं-मैं’ करने लगते और गुत्थमगुत्थी कर लेते थे|
“Vaisampayana said, ‘Thus worshipped by Bhishma, Drona, that first ofmen, endued with great energy, took up his quarters in the abode of theKurus and continued to live there, receiving their adorations.
1 [व]
एतस्मिन्न एव काले तु भीष्मकस्य महात्मनः
हिरण्यलॊम्नॊ नृपतेः साक्षाद इन्द्र सखस्य वै
“Vaisampayana said, ‘In the midst, O Bharata, of all those assembledkings, Bhishma, the son of Santanu, then said these words untoDuryodhana, ‘Once on a time, Vrihaspati and Sakra went to Brahma.
महाराज युधिष्ठिर ने जब सुना कि श्रीकृष्ण ने अपनी लीला का संवरण कर लिया है और यादव परस्पर कलह से ही नष्ट हो चुके हैं, तब उन्होंने अर्जुन के पौत्र परीक्षित का राजतिलक कर दिया| स्वयं सब वस्त्र एवं आभूषण उतार दिए| मौन व्रत लेकर, केश खोले, संन्यास लेकर वे राजभवन से निकले और उत्तर दिशा की ओर चल पड़े| उनके शेष भाइयों तथा द्रौपदी ने भी उनका अनुगमन किया|