अध्याय 55
1 [वैषम्पायन]
अथाब्रवीन महातेजा वाक्यं कौरवनन्दनः
हन्त धर्मान परवक्ष्यामि दृढे वान मनसी मम
1 [वैषम्पायन]
अथाब्रवीन महातेजा वाक्यं कौरवनन्दनः
हन्त धर्मान परवक्ष्यामि दृढे वान मनसी मम
“Bhishma said, ‘Once on a time a king of Janaka’s race, while ranging theuninhabited forests in pursuit of deer, saw a superior Brahmana or Rishiof Bhrigu’s race.
मंगल बहुत सीधा और सच्चा था| वह बहुत गरीब था| दिन भर जंगल में सूखी लकड़ी काटता और शाम होने पर उनका गट्ठर बाँधकर बाजार जाता|
1 [आर्ह]
तापत्य इति यद वाक्यम उक्तवान असि माम इह
तद अहं जञातुम इच्छामि तापत्यार्थ विनिश्चयम
एक बार द्वारिका निवासी यदुकुल के कुछ लड़के पानी ढूंढ़ते हुए एक पुराने कुएं के पास पहुंचे| वह कुआं घास और फैली हुई बेलों से पूरी तरह ढका हुआ था| लड़कों ने घास हटाकर देखा तो कुएं में उन्हें एक बड़ा गिरगिट दिखाई पड़ा| उस गिरगिट को उन्होंने बाहर निकालना चाहा और इसी इच्छा से उन्होंने कुएं से रस्सी फेंकी, लेकिन गिरगिट पर्वत की तरह भारी हो गया और वे कितना भी जोर लगाकर उसे नहीं खींच सके|
“Vaisampayana said, ‘O Janamejaya, when Gandhari’s conception had been afull year old, it was then that Kunti summoned the eternal god of justiceto obtain offspring from him.
“Vidura said, ‘The heart of a young man, when an aged and venerableperson cometh to his house (as a guest), soareth aloft. By advancingforward and saluting him, he getteth it back.
“Markandeya continued, ‘Do ye again hear from me the glory of theBrahmanas! It is said that a royal sage of the name of Vainya was onceengaged in performing the horse-sacrifice and that Atri desired to go tohim for alms.
एक वैश्या थी| उसके मन में विचार आया कि मेरा कल्याण कैसे हो? अपने कल्याण के लिये वह साधुओं के पास गयी| उन्होंने कहा कि तुम साधुओं का संग करो| साधु त्यागी होते हैं, इसलिये उनकी सेवा करो तो कल्याण होगा| फिर वह ब्राह्मणों के पास गयी तो उन्होंने कहा कि साधु तो बनावटी है, पर हम जन्म से ब्राह्मण हैं| ब्राह्मण सबका गुरु होता है|