अध्याय 173
1 भीष्म उवाच
सा निष्क्रमन्ती नगराच चिन्तयाम आस भारत
पृथिव्यां नास्ति युवतिर विषमस्थतरा मया
बान्धवैर विप्रहीनास्मि शाल्वेन च निराकृता
1 भीष्म उवाच
सा निष्क्रमन्ती नगराच चिन्तयाम आस भारत
पृथिव्यां नास्ति युवतिर विषमस्थतरा मया
बान्धवैर विप्रहीनास्मि शाल्वेन च निराकृता
“Vaisampayana said, ‘When Duryodhana, the son of Dhritarashtra, showedlittle regard for the words spoken by Sanjaya, and when the rest remainedsilent, the assembled kings rose up and retired.
“Vaisampayana said, ‘Then, when the night had passed away, a largeconcourse of the townspeople came there in haste to see the sons ofPandu. After extinguishing the fire, they saw that the house just burntdown had been built of lac in materials and that (Duryodhana’s)counsellor Purochana had been burnt to death.
दुर्योधन के कपट-द्यूत में सर्वस्त्र हारकर पांडव द्रौपदी के साथ काम्यक वन में निवास कर रहे थे, परंतु दुर्योधन के चित्त को शांति नहीं थी| पांडवों को कैसे सर्वथा नष्ट कर दिया जाए, वह सदा इसी चिंता में रहता था|
आलुओं को सभी सब्जियों में अग्रणी माना जाता है| यदि किसी भी पकवान में आलू न हो तो सब कुछ फीका-फीका ही प्रतीत होता है| आलू का प्रयोग बारहों महीने और तीसों दिन किया जाता है| सब्जी के रूप में, चाट-पकौड़ी के रूप में या फिर चिप्स और पापड़ के रूप में; सभी में आलू प्रयुक्त होता है| विश्व भर में इसका प्रयोग किया जाता है, किन्तु यह वायु को बढ़ाने वाला है| इससे मांस व चर्बी की वृद्धि होती है|
Vaisampayana said, “Once upon a time Yudhishthira, while living at thatplace, addressed Krishna, his brother, and the Brahmanas, saying,
फारस देश का बादशाह नौशेरवाँ अपनी न्यायप्रियता के लिए बहुत प्रसिद्ध हो गया था| वह बहुत दानी भी था| एक दिन वह अपने मन्त्रियों के साथ घुमने निकला| उसने देखा कि एक बगीचे में एक बहुत बूढ़ा माली अखरोट के पेड़ लगा रहा है| बादशाह उस बगीचे में गया| उसने माली से पूछा-‘तुम यहाँ नौकर हो या यह तुम्हारा ही बगीचा है?’
“Lomasa said, ‘Once on a time, O king, those celestials, namely the twinAswins, happened to behold Sukanya, when she had (just) bathed, and whenher person was bare.
“Vaisampayana said, ‘Thus addressed by Krishna, Yudhishthira, the son ofDharma, endued with great intelligence, saluted Vyasa and said thesewords: ‘Do thou cause me to be initiated when the proper hour, as thoutruly knowest, comes for that rite. This my sacrifice is entirelydependent on thee.’
1 [स]
ततॊ ऽरजुनस्य भवनं परविश्याप्रतिमं विभुः
सपृष्ट्वाम्भः पुण्डरीकाक्षः सथण्डिले शुभलक्षणे
संतस्तार शुभां शय्यां दर्भैर वैडूर्य संनिभैः