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1 भीष्म उवाच
ततॊ ऽहं समनुज्ञाप्य कालीं सत्यवतीं तदा
मन्त्रिणश च दविजांश चैव तथैव च पुरॊहितान
समनुज्ञासिषं कन्यां जयेष्ठाम अम्बां नराधिप

एक बार भगवान श्रीकृष्ण हस्तिनापुर से दुर्योधन के यज्ञ से निवृत्त होकर द्वारका लौटे थे| यदुकुल की लक्ष्मी उस समय ऐंद्री लक्ष्मी को भी मात कर रही थी| सागर के मध्य स्थित श्री द्वारकापुरी की छटा अमरावती की शोभा को और भी तिरस्कृत कर रही थी|

एक बार कुछ खरगोश गरमी के दिनों में झरबेरी की एक सूखी झाड़ी में इकट्ठे हुए| खेतों में उन दिनों अन्न न होने से वे सब भूखे थे और इन दिनों सुबह और शाम को गाँव से बाहर घुमने वालों के साथ आने वाले कुत्ते भी उन्हें बहुत तंग करते थे|