Home2011February (Page 39)

बादशाह अकबर और बीरबल शाम को सैर कर रहे थे| मार्ग में उन्हें एक वृद्ध स्त्री मिली, जिसके हाथ में म्यान सहित एक तलवार थी| बादशाह अकबर उस वृद्ध स्त्री के पास गए और बोले – “माताजी, यह तलवार लेकर आप यहां क्यों कड़ी हैं|”

उद्धवजी वृष्णवंशियोंमें एक प्रधान पुरुष थे| ये साक्षात् बृहस्पतिजीके शिष्य और परम बुद्धिमान् थे| मथुरा आनेपर भगवान् श्रीकृष्णने इन्हें अपनी मन्त्री और अन्तरङ्ग सखा बना लिया|

सन्निपात ज्वर को वात-पित्त-कफ ज्वर भी कहते हैं| यह मानव शरीर में इन्हीं तत्वों की अधिकता के कारण उत्पन्न होता है| इसमें ज्वर इतना तेज होता है कि रोगी का होशो-हवास उड़ जाता है| वह मूर्च्छावस्था में बड़बड़ाने लगता है| इस बुखार की अवधि 3 दिन से 21 दिन मानी गई है|

आलंदी गांव (पूजा) के रहनेवाले एक स्वामी जी कर्णपीड़ा से बहुत दु:खी थे| उनके कान में इतना दर्द होता था कि वह रात को सो भी नहीं पाते थे| कान में सूजन बनी रहती थी| अनेकों इलाज करवाये पर कोई लाभ नहीं हुआ| डॉक्टरों ने ऑपरेशन करवाने को कहा|

पूर्वकालमें वसुश्रेष्ठ द्रोण और उनकी पत्नी धरादेवीने भगवान् की प्रसन्नताके लिये कठोर आराधना की| ब्रह्माजीसे उन्हें भगवान् को पुत्ररूपमें प्राप्त करनेका वर मिला था| ब्रह्माजीके उसी वरदानसे द्रोण और धराका नन्द और यशोदाके रूपमें जन्म हुआ| दोनों पति-पत्नी हुए और भगवान् श्रीकृष्ण-बलरामने पुत्र बनकर उन्हें वात्सल्यसुखका सौभाग्य दिया| 

एक बार एक भेड़िए को कही से भेड़ की खाल मिल गई तो वह फूला नही समाया| वह सोचने लगा, ‘सूर्यास्त के बाद जब गड़रिया भेड़ों को बाड़े में बंद कर देगा, तब मैं भी भेड़ों के बीच बाड़े में घुस जाऊँगा और रात को मोटी-सी भेड़ उठाकर भाग जाऊँगा| फिर उसे चटकारे लेकर खाऊँगा और इस खाल के कारण वह मुझे पहचान भी नही पाएगा|’