अध्याय 13
1 [क]
सर्वैर गुणैर महाराज राजसूयं तवम अर्हसि
जानतस तव एव ते सर्वं किं चिद वक्ष्यामि भारत
1 [भीस्म]
आसीत किल कुरुश्रेष्ठ महापद्मे पुरॊत्तमे
गङ्गाया दक्षिणे तीरे कश चिद विप्रः समाहितः
एक दिव्य देव शक्ति जो चिन्तान्त: करण में चित्रित चित्रों को पढ़ती है, उसी के अनुसार उस व्यक्ति के जीवन को नियमित करती है, अच्छे-बुरे कर्मो का फल भोग प्रदान करती है, न्याय करती है। उसी दिव्य देव शक्ति का नाम चित्रगुप्त है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान् श्री चितागुप्त जी महाराज कायस्थों के आदि पुरुष हैं
“Janamejaya said, ‘Interminably wedded to evil, blinded by avarice,addicted to wicked courses, resolved upon bringing destruction on hishead,
श्री हरिक्रिशन धिआईऐ जिस डिठै सभि दुखि जाइ ||
सतिगुरु हरिकृष्ण साहिब जी दिल्ली को जा रहे थे| आप को बालक रूप में गुरुगद्दी पर विराजमान देखकर कई अज्ञानी तथा अहंकारी पंडित मजाक करते थे| उनके विचार से गुरु साहिब के पास कोई आत्मिक शक्ति नहीं थी| ऐसे पुरुष जब निकट हो कर चमत्कार देखते हैं तो सिर नीचे कर लेते हैं| पर हर एक गुरु साहिब में सतिगुरु नानक देव जी अकाल पुरुष से प्राप्त की शक्ति थी, जो चाहें कर सकते थे| Chjju Jhivar An Introduction छज्जू झीवर (Chjju Jhivar)
“Vyasa said, ‘Hearing this sacred history of sixteen kings, capable ofenhancing the period of life (of the listener), king Srinjaya remainedsilent without saying anything.
“Vaisampayana said, ‘Then all the Pandavas and the illustrious king ofthe Panchalas and all others there present stood up and saluted withreverence the illustrious Rishi Krishna (Dwaipayana).