अध्याय 2
1 [वै]
ततस ते नियतात्मान उदीचीं दिशम आस्थिताः
ददृशुर यॊगयुक्ताश च हिमवन्तं महागिरिम
मेरी बुक्कल दे विच चोर नी,
मेरी बुक्कल दे विच चोर| टेक|
“Bhishma said, ‘Having said these words unto his dear spouse, the chiefof the Nagas proceeded to that place where the Brahmana was sitting inexpectation of an interview with him.
एक गाँव में एक बुढ़िया अपनी पुत्री के साथ रहती थी| उनके पास एक बैल भी था| जहाँ बुढ़िया मेहनती और कर्तव्यनिष्ठ थी, वहीं उसकी पुत्री बेहद आलसी और कामचोर प्रवृति की थी|
“Vaisampayana said, ‘After Kesava had dined and been refreshed, Vidurasaid unto him during the night, ‘O Kesava, this advent of thine hath notbeen a well judged one, for, O Janardana,
“Vasishtha continued, ‘The Brahmana lady, thus addressed by them, said,’Ye children, I have not robbed you of your eye-sight, nor am I angrywith you.
कुरु को कौन नहीं जानता? कुरुवंश के प्रथम पुरुष का नाम कुरु था| कुरु बड़े प्रतापी और बड़े तेजस्वी थे| उन्हीं के नाम पर कुरुवंश की शाखाएं निकलीं और विकसित हुईं| एक से एक प्रतापी और तेजस्वी वीर कुरुवंश में पैदा हो चुके हैं|
“Narada said, ‘The helpless lady, suppressing her arrow within her ownself, addressed, with joined hands, the Lord of the creation, bendingwith humility like a creeper.
ऐसा जोगी वडभागी भेटै माइआ के बंधन काटै ||
सेवा पूज करउ तिसु मुरति की नानकु तिसु पग चाटै ||५||