अध्याय 2
1 [कृप]
शरुतं ते वचनं सर्वं हेतुयुक्तं मया विभॊ
ममापि तु वचः किं चिच छृणुष्वाद्य महाभुज
“Karna said, ‘I am Karna, son of Radha and Adhiratha. For what, O lady,hast thou come here? Tell me what I am to do for thee?’
नंदन वन में वृक्ष पर चिड़ियों का एक जोड़ा सुखपूर्वक रहता था| समय बीतने के साथ चिड़िया ने अंडे दिए| चिड़िया दिनभर अंडो पर बैठकर उन्हें सेती थी और चिड़ा भोजन जुटाता था|
“Sanjaya said, ‘Kshemadhurti, O monarch, pierced the advancingVrihatkshatra of great valour, that prince of the Kaikeyas, with manyarrows in the chest.
“Janamejaya said, ‘O Brahmana, tell me why and when that forest burnt inthat way, Agni consumed not the birds called Sarngakas?
“Bhishma said, ‘Having cast off the status of a worm and taken birth as aKshatriya of great energy, the person (of whom I am speaking),remembering his previous transformations, O monarch, began to undergosevere austerities.
महाराज उग्रसेनके एक भाई थे, उनका नाम देवक था| देवकीजी उन्हींकी कन्या थीं| ये कंससे छोटी थीं, अत: वह इनसे अत्यधिक स्नेह करता था| देवकजीने इनका विवाह वसुदेवजीके साथ अत्यन्त धूम-धामसे सम्पन्न किया|
1 [वै]
तान्य अनीकान्य अदृश्यन्त कुरूणाम उग्रधन्विनाम
संसर्पन्तॊ यथा मेघा घर्मान्ते मन्दमारुताः
शनि के नाम से ही हर व्यक्ति डरने लगता है। शनि की दशा एक बार शुरू हो जाए तो साढ़ेसात साल बाद ही पीछा छोड़ती है। लेकिन हनुमान भक्तों को शनि से डरने की तनिक भी जरूरत नहीं। शनि ने हनुमान को भी डराना चाहा लेकिन मुंह की खानी पड़ी आइए जानें कैसे…