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यह घटना दिसम्बर, 1915 की है| गोविन्द बालाराम मानकर जो बांद्रा में रहते थे| साईं बाबा की भक्ति के दीवाने थे| अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् मानकर ने उनकी अंत्येष्टि क्रिया शिरडी में करने का अपने मन में विचार किया|

इसी प्रकार एक मुसलमान सिद्दीकी की बड़ी इच्छा थी कि किसी तरह वह मुसलमानों के पवित्र तीर्थ मक्का-मदीना कीई यात्रा पर जाए| पर, उसकी आर्थिक स्थिति ऐसी न थी कि वह हज के लिए पैसा इकट्ठा कर पाता| फिर भी वह इच्छा कर रहा था| वह प्रतिदिन द्वारिकामाई मस्जिद में पौधों को पानी देता था| साईं बाबा की धूनी के लिए भी जंगल से लकड़ियां काटकर लाता था| इस आशा से कि कभी साईं बाबा की उस पर कृपा हो जाए और वह हज की मुराद पूरी कर दें|

बांद्रा में रहनेवाला अम्मीर शक्कर साईं बाबा का भक्त था| वह वहां पर दलाली किया करता था| एक बार उसे गठिया रोग हो गया| रोग के कारण उसे असहनीय कष्ट का सामना करना पड़ रहा था| आखिर में बीमारी से परेशान होकर अपना काम-धंधा छोड़कर शिरडी आ गया और साईं बाबा से अपनी बीमारी के बारे में बताकर, उनसे मुक्ति दिलाने के लिए प्रार्थना करने लगा| उसकी प्रार्थना सुनकर बाबा ने उसे चावड़ी में रहने के लिए कहा|

शिरडी में रहते हुए एक बार बाबा साहब की पत्नी श्रीमती तर्खड दोपहर के समय खाना खाने बैठी थीं| उसी समस दरवाजे पर एक भूखा कुत्ता आकर भौंकने लगा| श्रीमती तर्खड ने अपनी थाली में से एक रोटी उठाकर उस कुत्ते को डाल दी| कुत्ता उस रोटी को बड़े प्रेम से खा गया| उसी समय वहां एक कीचड़ से सना हुआ सूअर आया तो उसे भी उन्होंने रोटी दे दी| यह एक सामान्य घटना थी, जिसे वह भूल गयीं|