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किसी अन्य गुरु के शिष्य पंत नाम के एक सज्जन कहीं जाने के लिए रेलगाड़ी में बैठे थे| वे शिरडी नहीं आना चाहते थे, पर विधाता के लिखे को कौन टाल सकता है ! जो मनुष्य सोचता है, वह पूरा कभी नहीं होता| होता वही है जो परमात्मा चाहता है| जिस डिब्बे में वह बैठे थे| अगले स्टेशन पर उसी डिब्बे में कुछ और लोग भी आ गये| इनमें से कुछ उनके मित्र और सम्बंधी भी थे| वे सभी लोग शिरडी जा रहे थे| संत से मिलकर सबको बड़ी प्रसन्नता हुई| सब लोगों ने पंत से शिरडी चलने को कहा| पंत स्वयं दूसरे गुरु के शिष्य थे| वे सोचने लगे, मैं अपने गुरु के होते हुए दूसरे गुरु के दर्शन करने क्यों जाऊं? उन्होंने उन्हें बहुत टालना चाहा लेकिन सबके बार-बार आग्रह करने पर आखिर वे तैयार हो गए|

तात्या कोते पाटिल और खडोबा मंदिर के पुजारी म्हालसापति दोनों ही साईं बाबा के परम भक्त थे और साईं बाबा भी दोनों से बहुत स्नेह किया करते थे| ये दोनों रात को बाबा के साथ मस्जिद में ही सोया करते थे| इस लोगों का सोने का ढंग भी बड़ा अजीब था| ये तीनों सिरों को पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा की ओर करते थे और तीनों के पैर बीच में आपस में एक जगह मिले हुए होते थे|

पंडितजी साईं बाबा को गांव से भगाने के विषय में सोच-विचार कर रहे थे कि तभी एक पुलिस कोंस्टेबिल आता दिखाई दिया| पंडितजी ने उसे दूर से ही पहचान लिया था| उसका नाम गणेश था| वह पंडितजी के पास आता-जाता रहता था|

नासिक के रहनेवाले मुले शास्त्री विद्वान थे| साथ में ज्योतिष, वेद, आध्यात्म के भी अच्छे जानकर थे| एक बार वे नागपुर के प्रसिद्ध करोड़पति श्री बापू साहब बूटी से मिलने के लिए शिरडी आये| मिलने के बाद जब बूटी मस्जिद की ओर जाने लगे तो सहज भाव से मुले शास्त्री भी उनके साथ चल दिये|