Homeतिलिस्मी कहानियाँ16 – दानव दोस्त | Daanav Dost | Tilismi Kahaniya

16 – दानव दोस्त | Daanav Dost | Tilismi Kahaniya

सुनहरी नीली चिड़िया- “ठहरो वधीराज,,,,,उसे जाने दो,,,, मैं राजकुमारी चंदा हूं।”

वधिराज- “क्या!!”

नीली चिड़िया- ” हां वधिराज!! तुम तो मुझे जानते ही होगे?”

वधिराज (सहम कर)- ” राजकुमारी जी आप?,,,, आप अभी तक भी इसी रूप में है? ”

सुनहरी चिड़िया- “हां वधिराज,, अब समय आ चुका है मुझे मेरे श्राप से मुक्ति मिलने का!”

करण (उठ कर)- “हां वधिराज,,, मै यहां राजकुमारी चंदा की सहायता करने के लिए आया हूं!”

वधिराज (अपने हाथ जोड़ कर)- “मुझे माफ करना राजकुमारी जी,, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई,।”

चिड़िया- “कोई बात नही, तुम्हारी जगह हम भी होते तो यही करते।”

वधिराज- “मेरे हिमनगर में बहुत सारे ऐसे लोग आते हैं जो मेरा फायदा उठाना चाहते हैं मुझे लगा कि शायद आप लोग उन्हीं में से होंगे!”

करमजीत- ” नहीं वधिराज ऐसा नहीं है!”

उस के बाद चिड़िया उसे सारी बात बताती है और उसे अपने साथ चलने के लिए कहती है।

वधिराज- “जी अवश्य, राजकुमारी जी! मैं भी साथ चलूंगा। चलिये, अपना सफर तय करते हैं!”

करण- “ये टॉबी कहाँ गया!!”

लव- “यहीं तो था!!”

कुश- “अ रे वो देखो, बर्फ में खेल रहा है!’

करण- “टॉबी!! टॉबी!!”

टॉबी- ” करण,,,, देखो ना कितना मजा आ रहा है यहां खेलने में।”

करण (उस के पास जा कर)- “अच्छा!! हा हा हा !! ये लो,,, फिर!”

और करण उस की तरफ बर्फ का छोटा गोला फेकता है।

करमजीत- “अरे वाह मैं भी आता हूं!”

लव और कुश (भागते हुए)- ” अरे हम भी आ रहे हैं!”

और सभी लोग बर्फ में हंसी मजाक और खेल कूद करने लगते हैं।
सब लोग बर्फ उठा उठा कर एक दूसरे पर फेंकने लगते हैं और तभी बर्फ खोदते हुए करमजीत का हाथ एक चीज पर लगता है।

करमजीत (हैरान हो कर)-” अरे देखो तो दोस्तों !! यहां कुछ है! जल्दी से सारी बर्फ हटाओ!”

तो सब लोग मिल कर सारी बर्फ हटाने लग जाते है और वहां जमीन पर एक दरवाजा होता है और करमजीत और करन जोर लगा कर उस दरवाजे को खोलते हैं तो देखते हैं कि कुछ सीढ़ियां नीचे की तरफ जा रही थी।

करण- “तुम सब यहीं ठहरो! हो सकता है अंदर कोई खतरा हो। मैं जा कर देखता हूं।”

कर्मजीत- ” नहीं नहीं करण!! तुम अकेले नहीं जाओगे। मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा।”

करण- “ठीक है!! हम दोनों जा कर देखते हैं। बाकी तुम सब बाहर रहना।”

तो करण और करमजीत दबे कदमों से सीढ़ियों से नीचे उतरते हैं। वहां काफी अंधेरा था और दीवार पर एक तरफ एक लैंप लगा होता है।

करण- ” वह देखो करमजीत! लैंप!!”

करमजीत- ” क्या पता यह भी कोई जादुई लैंप हो। अब इसे उठाएं या ना उठाएं।”

करन- “उठा लेते हैं! फिर देखते हैं क्या होता है।”

करण उस लैंप को उठा कर जला लेता है। वह एक साधारण लैंप ही था।
फिर करण और करमजीत धीरे धीरे चल कर आगे बढ़ते जाते हैं और वहीं उन के सारे दोस्त बाहर इंतजार कर रहे थे।

लव- “इन को इतना समय क्यों लग रहा है।”

कुश- “वही मैं भी सोच रहा हूँ !”

बुलबुल- “मुझे लगता है हमे भी नीचे जाना चाहिए।”

चिड़िया- “नही ननही। डरो मत। वो दोनों बहुत बहादुर है। उन्हें कुछ नही होगा।”

तभी करण और कर्मजीत की जोर से चिल्लाने की आवाज आती है और उनके दोस्त घबरा जाते हैं।
फिर अचानक से उन के हंसने की आवाज आती है।

करण (खुश हो कर)- ‘आओ सब लोग। जल्दी नीचे आ जाओ।”

करमजीत- ” हां हां जल्दी आओ! यह तो बहुत अद्भुत है।”

तो बाकी सब लोग नीचे जाते हैं और देखते हैं कि अंदर एक कमरा था जिस में बहुत सारे खाने पीने के सामान थे।

टॉबी- “अरे इतने सारे सामान! मैंने तो कभी जिंदगी में भी नहीं देखे।”

लव- “आज तो मजा ही आ जाएगा। पेट भर भर कर खाएंगे!”

कुश- ” हां यह तो बहुत ही सुंदर चीजें है।”

सुनहरी चिड़िया- “कहीं यह कोई मायाजाल तो नहीं।”

करण- ” कुछ कह नहीं सकते राजकुमारी जी। यह तो खाने के बाद ही पता लगेगा।”

बुलबुल- ” तो अब कौन इसे खा कर अपनी जान खतरे में डालने वाला है।”

टॉबी- ” मैं खाऊंगा!”

कुश- ” नहीं नहीं मैं खाऊंगा!!’

लव- “अरे तुम दोनों रहने दो। मैं खा लूंगा।”

और इतने में करण वहां से एक फल उठा कर खा लेता है लेकिन करण को कुछ भी नहीं होता है।

करण- “सब कुछ सही है! टूट पड़ो जवानों! हा हा हा!!”

और सब लोग पेट भर कर तरह-तरह की चीजें खाते हैं और बहुत खुश होते हैं ।
वधिराज भी बहुत सारा सामान ले कर जमीन पर बैठ जाता है और खाता रहता है

बुलबुल- “मजा ही आ गया।”

लव- “हां पेट भर गया, पर मन नही भरा!”

वधिराज- “सब ने खा लिया ना अच्छे से।!”

टॉबी- “हां हां!!”

वधिराज- “बस अब तो चलिए। अब हमें जाना चाहिए यहां से!!”

चिड़िया- “हां,,,,वधिराज!”

परी- “सभी लोग इस जादुई दरी में आ जाओ!”

सभी लोग बैठते हैं और वहां से निकलते हैं। कि तभी अचानक से किसी स्त्री की जोर जोर से हंसने की आवाज आने लगती है।

वधिराज (डर कर)- “अरे,,,अरे ,,,,,,,,!”

अचानक उन सब पर कोई पत्थरों की वर्षा करने लगता है।

परी- ” हमें नीचे उतरना होगा। मैं एक ढाल बना कर आप सभी को बचा लुंगी।”

लव- “जल्दी कीजिये। ये तो बहुत जोर से लग रहे हैं।”

वधिराज- ” मैं भी इन पत्थरों को अपनी ताकत से रोक रहा हूँ।”

तभी आसमान में एक बहुत बड़ी औरत आ जाती है।

वह औरत- ” मुझे बिना बताए कहां जा रहे हो वधिराज?”

वधिराज- ” मैं राजकुमारी चंदा की मदद करने के लिए जा रहा हूं.. ऐसा मत करो। ये सब मेरे मित्र हैं!”

औरत- ” अच्छा तुम्हारे यह मित्र हैं तो मैं क्या हूं फिर? तुम मुझे भूल गए हो आजकल!”

चिड़िया- ” वधिराज,, यह कौन है?”

वधिराज- ” राजकुमारी यह मेरी मित्र रानू है,, उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं है कि मेरा कोई और मित्र हो,,!”

चिड़िया- “तो तुम समझाओ उसे!”

औरत रानू- ” वह मुझे क्या समझाएगा,, एक तो बिना बताए उसे यहां से ले जा रही हो और ऊपर से मुझे अकड़ दिखा रही हो!!”

चिड़िया- ” नही ऐसा नहीं है!”

और तभी गुस्से मे रानू अपने मुंह से फूंक मारने लगती है इससे सभी लोग उड़ने लग जाते हैं और अपनी जान बचाने के लिए वहां पर पड़ी हुई चीजों के पीछे छुप जाते हैं।

करमजीत- ” करण अब क्या करें? ”

करण- “कर्मजीत चलो और उस स्त्री पर हमला करो! वरना ये सब को मार देगी”

करमजीत- “मैं जाता हूँ मित्र, बहुत तेज हवा है। चला भी नही जा रहा।”

करमजीत मुश्किल से उस के पास पहुंच जाता है और उससे लड़ता है।

वधिराज ( रानू से)- “देखो,,,ऐसा,,, मत करो!”

लव- “अब क्या होगा???”

कुश- ” हमें कुछ करना होगा!”

बुलबुल- “अगर वहां गए तो मारे जाएंगे,, कहीं हम लोगों की वजह से करन और करमजीत और मुश्किल में ना पड़ जाए!!”

टॉबी- ” हे भगवान रक्षा करना!”

वधिराज (खुद से)- “अरे रानू (वो स्त्री),, तुम ऐसा क्यों कर रही हो,, क्या करू कुछ समझ में नहीं आ रहा,,, मै इसे मार भी तो नहीं सकता!”

लव- “वो तो परी की तरफ आग फेंक रही है।”

परी (रोते हुए)- ” हे भगवान यह क्या हो गया? इसने मेरे पंख जला दिये। ”

करण (गुस्से में)- ” तुम एक स्त्री हो कर दूसरी स्त्री को दुख दे रही हो। क्या तुम्हें लज्जा नहीं आती?,,,,,!”

रानू- “तू मुझे मत सिखा!! तुम सब आज यहां से जिंदा नहीं जाओगे,,,!”

चिड़िया- ” हम माफी मांगते हैं ऐसा मत करो रानू!”

वधिराज- ” तुम गलत कर रही हो रानू!”

रानू- ” तुम कितना बदल गए हो,, अभी भी उन लोगों का ही साथ दे रहे हो,,, नये लोगों के जीवन में आ जाने से पुराने मित्रों को नहीं भूलते वधिराज!”

वधिराज (उस को तलवार मारते हुए)- “रानू! तुम गलत सोच रही हो, तुम गलत कर रही हो!”

रानू- ” जितना भी लड़ लो,,, मुझ से बचना नामुमकिन है!”

करण (तलवार मारते हुए)- “तुम ही सर्वश्रेष्ठ हो, इस बात की गलतफहमी जल्दी छोड़ दो,, तुम्हारे लिए लाभदायक होगा!”

यह सभी लोग लड़ते-लड़ते हिम के पहाड़ के टीले पर पहुंच जाते हैं।

रानू (गुस्सा हो कर)- ” तुम अच्छा नहीं कर रहे हो वधिराज,, मेरी सहायता करने की बजाए तुम उन लोगों की सहायता कर रहे हो,,,!”

वधिराज- ” अपनी जिद छोड़ दो और सच्चाई को पहचानो!”

करन ( उस के हाथ पकड़े हुए है)- ” हाथ को कस के पकड़ना वधिराज,,, चिंता मत करो, हम आप को बचा लेंगे!”

चिड़िया- “वधिराज काफी लंबा चौड़ा और हट्टा कट्टा है इसलिए करण के लिए उस को पकड़ना थोड़ा मुश्किल हो रहा है

लव- “करमजीत तुम भी जा कर उस की सहायता करो, करण से वो छूट रहा है।”

और जैसे तैसे दोनों लोग वधिराज को ऊपर खींच लेते हैं।

रानू- ” वधिराज,,,, आप ठीक तो है,,ना?”

वधिराज- ” तुम चुप रहो,,, तुम मेरी मित्र हो और तुम तो मुझे ही दुविधा में डाल रही हो? ऐसी कैसी मित्रता?????”

रानू (दुखी हो कर)- “मुझे माफ कर दो वधिराज,, मैं तो बस चाहती थी कि तुम्हारा कोई और मित्र ना हो!!”

वधिराज- ” माना कि तुम मुझ से बहुत प्रेम करती हो परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि तुम मुझे कोई भला कार्य करने के लिए रोको!”

बुलबुल- ” वधिराज जी,, रानू जी को माफ कर दीजिए,, शायद उन्हें अपनी गलती का आभास हो चुका है!”

और सभी लोग वधिराज को समझाते हैं। जिस से रानू को आभास होता है कि वह लोग वाकई में अच्छे हैं।

रानू- ” आप सभी मुझे माफ कर देना,, मुझ से गलती हो गई। शायद मुझे अपनी ताकत का कुछ ज्यादा ही घमंड हो गया है!”

सुनहरी चिड़िया- “ऐसी कोई बात नहीं है रानू,,,,गलती तो सब से होती है…अब तो तुम वधिराज को यहां से जाने दोगी ना? ”

रानू- ” हाँ हां!! क्यों नही? ”

कुश- “लेकिन राजकुमारी!! अप्सरा का क्या होगा? उन के पंख उन्हें वापस कैसे मिलेंगे?”

और तभी रानू उन्हें एक उपाय बताती है।

तो वह उपाय क्या था यह जानने के लिए देखिएगा हमारे साथ कहानी का अगला भाग।

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