श्री रामदास जी का अपना घट तोड़ कर धर्मशाला बनानी – साखी श्री गुरु राम दास जी
श्री गुरु रामदास ने आषाढ़ संवत् १६३४ को अमृत सरोवर की खुदाई का कार्य जोर-शोर से आरम्भ करा दिया| श्री गुरु अमरदास जी ने यह समझाया था कि यहां अमृत सरोवर तीर्थ प्रगट होगा| दुनीचन्द को अपने पिंगले जवाई के जब आरोग्य होने की खबर मिली| वह बड़े सत्कर के साथ गुरु जी को अपने घर पट्टी नगर में ले गया|
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लाहौर के सिक्खों को जब यह ज्ञात हुआ कि गुरु जी ऐसा सरोवर तैयार करा रहे हैं जो बड़ा ही शक्तिवान है| जिसके पवित्र जल में स्नान करके काले कौए हंस के समान हो जाते हैं| वह गुरु के दर्शन करने गुरु के चक आए| उन्होंने कुछ दिन वहां कार-सेवा की| गुरु जी के दर्शन करके जब वह वापिस जाने लगे तो गुरु जी के ताए के पुत्र सहारी मल ने गुरु जी को लाहौर आने की बेनती की और कहा कि महाराज! एक बार लाहौर चल कर अपने वंश और सम्बंधियों को दर्शन देकर कृतार्थ करें| उनका प्रेम व श्रद्धा देखकर गुरु जी ने लाहौर जाना स्वीकार कर लिया| लाहौर आकर गुरु जी ने अपना चूने मण्डी वाला घर तोड़कर धर्मशाला बनवा दी और संगतों के स्नान पानी के लिए कुआं भी लगा दिया| आप ने सभी सिक्खों को उपदेश देकर कृतार्थ किया| आपके उपदेश से प्रभावित होकर कुछ श्रद्धालुओं ने सिक्खी धारण कर ली| धर्मशाला की सेवा सिक्खों को सौंपकर आप वापिस गुरु के चक आ गए|
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