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कुरुक्षेत्र में पंडित नानू को भ्रम से निकालना – साखी श्री गुरु नानक देव जी

कुरुक्षेत्र में पंडित नानू को भ्रम से निकालना

सज्जन ठग को सच्चा ठग बनाकर गुरु जी पाकपटन शेख ब्रह्म के साथ ज्ञान चर्चा करके कुरुक्षेत्र पहुंच गए| उस समय लोग सूर्यग्रहण के मेले के लिए दूर-दूर से आए थे|

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गुरु जी सुनहरी सरोवर के दूसरी ओर डेरा डाल कर बैठ गए| एक राजकुमार हिरण का शिकार करके भेंट स्वरूप में हिरण को लाया व इसकी खाल से गुरु जी को आसन बनाने को कहा| परन्तु गुरु जी ने अपने सच्चे मिशन के प्रचार के लिए हिरण को देग में डालकर पकने के लिए रख दिया| उधर लोग आग में पकती चीज को देखकर इकट्ठा हो गए| नानू पण्डित जो कि उनकी अगवाई कर रहे थे, पता लगने पर देग में मांस पक रहा है, कई प्रकार के प्रश्न करने शुरू कर दिए| आपका साधु धर्म है और इस सूर्यग्रहण के पवित्र समय पर आपने मांस जैसी बुरी वस्तु को अग्नि पर क्यों रखा हुआ है? गुरु जी ने वहां शब्द का उच्चारण किया

सलोकम : १||
पहिलां मासहु निमिआ मासै अंदरि वासु || 
जीउ पाइ मासु मुहि मिलिआ हडु चंमु तनु मासु||
मासहु बाहरि कढिआ मंमा मासु गिरासु||
(श्री गुरु ग्रन्थ साहिब प.१२८१)

यह शब्द सुनकर पंडित नानू ने गुरु जी को नमस्कार करके सबको बताया कि यह कलियुग के अवतार है| इन्हे नमस्कार करनी बनती है| अब इस स्थान पर एक साधारण गुरुद्वारा पहली पातशाही करके प्रसिद्ध है|

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