HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 90)

प्राचीन काल में रुक्मांगद नामक एक प्रसिद्ध सार्वभौम नरेश थे| भगवान् विष्णु की आराधना ही उनका जीवन था| वे चराचर-जगत् में अपने आराध्य भगवान् हषीकेश के दर्शन करते तथा पद्मनाभ भगवान् की सेवा की भावना से ही अपने राज्य का संचालन करते थे| वे सभी प्राणियों पर क्षमा भाव रखते थे|

रैदास नाम के एक बड़े भगवद्भक्त थे| वे काशी में रहते थे| गंगा के घाट के पास ही उनकी झोंपड़ी थी, जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ रहते थे और झोंपड़ी के बाहर बैठकर जूते गांठते रहते थे|

यह घटना उस समय की है, जब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन मद्रास के एक ईसाई मिशनरी स्कूल के छात्र थे। वह बचपन से बेहद कुशाग्र एवं तीव्र बुद्धि के थे। कम उम्र में ही उनकी गतिविधियां व उच्च विचार लोगों को हैरानी में डाल देते थे।

बादशाह अकबर अपने दरबारियों और कुछ अंगरक्षकों के साथ नौका-विहार कर रहे थे| बीरबल भी उनके साथ था| नाव जब बीच नदी में पहुंची तो अकबर ने एक तिनका दिखाकर कहा – “कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा, आज देखते हैं यह तिनका किसका सहारा बनता है| जो भी इस नदी को तिनके के सहारे पार कर लेगा मैं उसे दिल्ली का बादशाह बना दूंगा|”

एक बार महर्षि आपस्तम्बने जल में ही डूबे रहकर भगवद् भजन करने का विचार किया| वे बारह वर्षों तक नर्मदा और मत्स्या संगम के जल में डूबकर भगवत्स्मरण करते रह गए|

महर्षि याज्ञवल्क्य का शास्त्र ज्ञान और ब्रह्मज्ञान अपूर्व है| यज्ञवल्क के वंशज होने के कारण इनका नाम याज्ञवल्क्य पड़ा| इनके पिता का नाम ब्रह्मा था|

एक फकीर कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक सौदागर मिला, जो पांच गधों पर बड़ी-बड़ी गठरियां लादे हुए जा रहा था। गठरियां बहुत भारी थीं, जिसे गधे बड़ी मुश्किल से ढो पा रहे थे। फकीर ने सौदागर से प्रश्न किया, ‘इन गठरियों में तुमने ऐसी कौन-सी चीजें रखी हैं, जिन्हें ये बेचारे गधे ढो नहीं पा रहे हैं?’

बगदाद के खलीफ़ा हारून रशीद एक दिन महल में उदास बैठे थे| तभी उनका वज़ीर जाफ़र किसी काम से वहाँ पहुँचा| बादशाह को चिंतित देखकर वह चुपचाप हाथ बाँधकर एक और खड़ा हो गया|