HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 79)

एक पण्डितजी महाराज क्रोध न करने पर उपदेश दे रहे थे| कह रहे थे – “क्रोध आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन है, उससे आदमी की बुद्धि नष्ट हो जाती है| जिस आदमी में बुद्धि नहीं रहती, वह पशु बन जाता है|”

नाभानेदिष्ठ मनु के पुत्र थे| वे ब्रहमचर्य-आश्रम के अंतर्गत विधीयमान संस्कारो से युक्त होकर अपने गुरु के समीप वेदाध्ययन में रत रहते| जब पिता की संपत्ति के बँटवारे का समय आया तो नाभानेदिष्ठ के अन्य भाइयों ने आपस में सारी संपत्ति का भाग बाँट लिया और उन्हें कुछ भी नही दिया|

बच्चे उसे मंदबुद्धि कहकर चिढ़ाते थे। एक दिन वह कुएं के पास बैठा था, तभी उसकी नजर पत्थर पर पड़े निशान की ओर गई। उसने सोचा – जब कठोर पत्थर पर निशान बन सकते हैं तो मुझे भी विद्या आ सकती है।

युद्ध के नौ दिन व्यतीत हो चुके थे| अनेक वीर अपने प्राण न्योछावर कर चुके थे| अभी ऐसा प्रतीत होता कि पांडवों की विजय होगी तो कभी लगता था कि कौरव अधिक शक्तिशाली थे|

कश्मीर की एक घटना है| हम लोग एक दिन शिकारे में बैठकर ‘डल’ झील में घूम रहे थे| हमारे शिकारे वाला बड़ा मौजी आदमी था| डांड चलाते-चलाते कोई तान छेड़ देता था, वह खूब जोर से गाता था| वह हमें तैरती खेती दिखाने ले गया| वह कमल के बड़े-बड़े पत्तों और फूलों के बीच घूमता हुआ उस जगह आया, जहां एक सुंदर लड़की तीर-सी पतली नाव पर बैठी अपने खेत देख रही थी|

दैत्यराज विरोचन भक्तश्रेष्ठ प्रहलाद के पुत्र थे और प्रहलाद के पश्चात् ये ही दैत्यों के अधिपति बने थे| प्रजापति ब्रहमा के समीप दैत्यों के अग्रणी रूप में धर्म की शिक्षा ग्रहण करने विरोचन ही गए थे| धर्म में इनकी श्रद्धा थी| आचार्य शुक्र के ये बड़े निष्ठावान् भक्त थे और शुक्राचार्य भी इनसे बहुत स्नेह करते थे|

एक बार इंद्रप्रस्थ में पांडवोँ की सभा में श्रीकृष्णचंद्र कर्ण की दानशीलता की प्रशंसा करने लगे| अर्जुन को यह अच्छा नही लगा| उन्होंने कहा- ‘ऋषिकेश! धर्मराज की दानशीलता में कहाँ त्रुटि है जो उनकी उपस्थिति में आप कर्ण की प्रशंसा कर रहे है?’

एक व्यक्ति नित्य ही समुद्र तट पर जाता और वहां घंटों बैठा रहता। आती-जाती लहरों को निरंतर देखता रहता। बीच-बीच में वह कुछ उठाकर समुद्र में फेंकता, फिर आकर अपने स्थान पर बैठ जाता। तट पर आने वाले लोग उसे विक्षिप्त समझते और प्राय: उसका उपहास किया करते थे।

कौशल देश में एक बड़ा ही भयंकर डाकू रहता था| उसका नाम था अंगुलिमाल| उसने लोगों को मार-मारकर उनकी उंगलियों की माला अपने गले में डाल रखी थी, इसलिए उसका यह नाम पड़ा|