HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 78)

एक विदेशी को अपराधी समझ जब राजा ने फांसी का हुक्म सुनाया तो उसने अपशब्द कहते हुए राजा के विनाश की कामना की। राजा ने अपने मंत्री से, जो कई भाषाओं का जानकार था, पूछा- यह क्या कह रहा है?

द्रोण की मृत्यु के बाद कर्ण को कौरव सेना के संचालन का भार सौंपा गया| दुर्योधन, द्रोण की मृत्यु से चिंतित था| अश्वत्थामा क्रोधित होकर युद्ध कर रहा था और हवा में अग्नि बाण चला रहा था|

किसी नगर में एक दुकानदार था| उसकी कपड़े की दुकान थी| वह बड़ा ही ईमानदार था और अपने ग्राहकों के साथ उसका व्यवहार बड़ा अच्छा रहता था| इसलिए उसकी दुकान खूब चलती थी|

प्राचीन काल में चायमान अभ्यवर्ती और संजय के पुत्र प्रस्तोक नाम के दो परम प्रतापी, अत्यंत धर्मात्मा एवं परम उदार प्रजापालक राजा हुए है| दोनों के राज्य अत्यंत निकट एक-दूसरे से सटकर थे| दोनों की सीमाएँ एक-दूसरे से मिलती थी| दोनों के राज्यों में सदैव यज्ञ-होम, जप-तप, दान-दक्षिणा रुप धर्मानुष्ठान चलते रहते|

हजरत मोहम्मद जब भी नमाज पढ़ने मस्जिद जाते तो उन्हें नित्य ही एक वृद्धा के घर के सामने से निकलना पड़ता था। वह वृद्धा अशिष्ट, कर्कश और क्रोधी स्वभाव की थी। जब भी मोहम्मद साहब उधर से निकलते, वह उन पर कूड़ा-करकट फेंक दिया करती थी। मोहम्मद साहब बगैर कुछ कहे अपने कपड़ों से कूड़ा झाड़कर आगे बढ़ जाते। प्रतिदिन की तरह जब वे एक दिन उधर से गुजरे तो उन पर कूड़ा आकर नहीं गिरा। उन्हें कुछ हैरानी हुई, किंतु वे आगे बढ़ गए।

प्रातःकाल होते ही अर्जुन अपने रथ पर सवार हो गए| वे पिछली रात प्रिय पुत्र अभिमन्यु को जिस प्रकार वीरगति प्राप्त हुई थी, उसे याद कर, रोते रहे थे| केवल जयद्रथ को सूर्यास्त से पूर्व मृत्युदंड देने की प्रतिज्ञा ने उन्हें जीवित रखा हुआ था|

किसी नगर में राबिया नाम की बड़ी ऊंची संत थीं| उनका जीवन अत्यंत सादा, सरल और सात्विक था| उनका हृदय हर घड़ी प्रेम से छलछलाता रहता था और उनका द्वार सबके लिए हमेशा खुला रहता था|

सप्तसिंधव के प्रतापशाली सम्राटों में इक्ष्वाकुवंशीय महाराज त्रैवृष्ण त्र्यरुण अत्यंत प्रतापी और उच्चकोटि के विद्वान राजा हुए है| सत्यनिष्ठा, प्रजावत्सलता, उदारता आदि सभी प्रशंसनीय सद्गुण मानो उन-जैसे सत्पात्र में बसने के लिए लालायित रहते थे| समन्वय के उस सेतु को पाकर संसार में प्रायः दिखने वाला लक्ष्मी-सरस्वती का विरोध भी मानो सदा के लिए मिट गया|

मेवाड़ के राजा समरसिंह की मृत्यु का समाचार जब मोहम्मद गौरी को मिला तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। समरसिंह का कोई पुत्र नहीं था। अत: उस पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन करना अत्यंत सरल था। गोरी ने अपने सेनापति को बुलाकर कहा- सेनापति कुतुबुद्दीन! इस समय मेवाड़ पर रानी राज्य कर रही हैं। तुम फौरन मेवाड़ पर चढ़ाई कर उसे अपने कब्जे में ले लो। कुतुबुद्दीन भी गोरी के इस विचार से पूर्णत: सहमत था। उसने मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी।

युद्ध के तेरहवें दिन अर्जुन ने विचार किया कि वे द्रोण की सेना के भाग को पीछे हटाकर अपनी सेना के दूसरे भाग की ओर सहायता करने बढ़ेंगे क्योंकि उन्हें यह विश्वास था कि युधिष्ठिर अब पूर्ण रूप से सुरक्षित है|