HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 139)

चित्रनगर में वीरवर नामक एक रथकार रहता था| वह सीधा-सादा और व्यवहार-कुशल था| वह जितना भोला था, उसकी पत्नी कामदमनी उतनी ही दुष्ट और चरित्रहीन थी| उसकी दुष्टता के चर्चे हर किसी की जुबान पर थे| वीरवर पत्नी के दुराचरण से बहुत दुखी था|

एक फूल को मे प्रेम करता हूँ, इतना प्रेम करता हूँ की मुझे डर लगता है कि कही सूरज की रोशनी मे कुम्हला न जाए, मुझे डर लगता है की कही जोर की हवा आए तो इसकी पंखुडिया गिर न जाए | मुझे डर लगता है की कोई जानवर आकर इसे चर न जाए| मुझे डर लगता है की पडोसी के बच्चे इसको उखाड़ न ले, अतः मे फूलो के पोधे को मय गमले के तिजोरी मे बंद करके ताला लगा देता हूँ | प्रेम तो मेरा बहुत है, लेकिन करुणा मेरे पास नही हैं|

बीरबल से जलने वाले बहुत थे| एक बार किसी ईर्ष्यालु ने चौराहे पर एक कागज चिपका दिया| उसमें शुरू से आखिर तक बीरबल कोसा गया था| उस पर हर आने-जाने वाले की नजर पड़ती थी|

प्राचीन समय की बात है| अनेक वर्षों तक गुरु चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अनेक विधाएँ सिखाने के बाद सैन्य संचालन और युद्ध-विद्या की शिक्षा दी| उन्होंने जब देखा कि चंद्रगुप्त सैन्य-संचालन में योग्य हो गया है, तब उन्होंने संचित धन से सेना एकत्र की|

बाइबिल में एक कथा है। एक कपूत घर छोड़कर भाग जाता है। उसके पिता के घर में सभी प्रकार की सुविधाएँ बहुलता से प्राप्त थीं। लालसा की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि सब कुछ उपलब्ध था।

मिथिला नगर में मनसुख नामक जुलाहा रहता था| एक दिन काम करते समय उसका करघा टूट गया| करघा बनाने के लिए लकड़ी की आवश्यकता थी, अतः वह कुल्हाड़ी लेकर वन में पहुँचा और एक सूखे शीशम के पेड़ को काटने लगा|

बादशाह अकबर के पुत्र शहजादा सलीम तथा दिल्ली के एक व्यापारी के पुत्र की आपस में गहरी मित्रता हो गई थी| वे दोनों अक्सर सारा-सारा दिन साथ ही बिताते थे| जिस कारण दोनों के ही पिता परेशान थे| व्यापारी के पुत्र ने मित्रता के कारण व्यापार में ध्यान देना छोड़ दिया था तथा शहजादा सलीम भी राज-काज की तरफ ध्यान नहीं देता था|

एक सुरम्य वन में स्थित झील में बहुत से जलचर बड़े ही प्रेमभाव से रहते थे| उन्हीं में एक केकड़ा और सारस भी थे| दोनों में अच्छी मित्रता थी| सारस को कोई दुख था तो बस यह कि एक साँप आकर उसके अंडे खा जाया करता था|