HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 127)

एक गाँव में एक किसान रहता था| उसका नाम था शेरसिंह| शेरसिंह शेर-जैसा भयंकर और अभिमानी था| वह थोड़ी सी बात पर बिगड़कर लड़ाई कर लेता था| गाँव के लोगों स सीधे मुँह बात नहीं करता था| न तो वह किसी के घर जाता था और न रास्ते में मिलने पर किसी को प्रणाम करता था| गाँव के किसान भी उसे अहंकारी समझकर उससे नहीं बोलते थे|

युधिष्ठिर जुए में अपना सर्वस्व हार गए थे| छलपूर्वक, शकुनि ने उनका समस्त वैभव जीत लिया था| अपने भाइयों को, अपने को और रानी द्रौपदी को भी बारी-बारी से युधिष्ठिर ने दांव पर रखा|

बादशाह अकबर बीरबल को बहुत मानते थे| बीरबल बड़े बुद्धिमान थे और अपनी विनोदपूर्ण बातों से बादशाह को प्रसन्न रखते थे| अकबर और बीरबल के विनोद की बहुत-सी बातें प्रचलित हैं| उनमें से कुछ बातें बड़े काम की हैं| एक घटना हम यहाँ सुना रहे हैं|

पांडव वनवास का जीवन व्यतीत कर रहे थे| भगवान व्यास की प्रेरणा से अर्जुन अपने भाइयों की आज्ञा लेकर तपस्या करने गए| तप करके उन्होंने भगवान शंकर को प्रसन्न किया, आशुतोष ने उन्हें अपना पाशुपतास्त्र प्रदान किया| इसके अनंतर देवराज इंद्र अपने रथ में बैठाकर अर्जुन को स्वर्गलोक ले गए| इंद्र तथा अन्य लोकपालों ने भी अपने दिव्यास्त्र अर्जुन को दिए|

एक गाँव में एक धनी मनुष्य रहता था| उसका नाम भैरोमल था| भैरोमल के पास बहुत खेत थे| उसने बहुत-से नौकर और मजदूर रख छोड़े थे| भैरोमल बहुत सुस्त और आलसी था| वह कभी अपने खेतों को देखने नहीं जाता था| अपने मजदूर और नौकरों को भेजकर ही वह काम कराता था|

राजदरबार के एक सेवक से कुछ लापरवाही हो गई, जिसे देखकर बादशाह अकबर बिगड़ गए और उसे आदेश दिया-“जाओ बाजार से एक सेर चूना लेकर आओ और उसे मेरे सामने खाओ|”

महाराष्ट्र के चन्द्रपुर जिले में आनन्दवन नामक एक बस्ती है| यहाँ पर जनसेवी बाबा आम्टे ने कुष्ठरोग से पीड़ित हजारों लोगों का रोग से मुक्त कर स्वावलम्बी बनाया|

एक बार भगवान श्रीकृष्ण हस्तिनापुर से दुर्योधन के यज्ञ से निवृत्त होकर द्वारका लौटे थे| यदुकुल की लक्ष्मी उस समय ऐंद्री लक्ष्मी को भी मात कर रही थी| सागर के मध्य स्थित श्री द्वारकापुरी की छटा अमरावती की शोभा को और भी तिरस्कृत कर रही थी|