HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 122)

दातादीन अपने लड़के गोपाल को नित्य शाम को सोने से पहले कहानियाँ सुनाया करता था| एक दिन उसने गोपाल से कहा- ‘बेटा! एक बात कभी मत भूलना कि भगवान् सब कहीं हैं|

भीम को यह अभिमान हो गया था कि संसार में मुझसे अधिक बलवान कोई और नहीं है| सौ हाथियों का बल है उसमें, उसे कोई परास्त नहीं कर सकता… और भगवान अपने सेवक में किसी भी प्रकार का अभिमान रहने नहीं देते| इसलिए श्रीकृष्ण ने भीम के कल्याण के लिए एक लीला रच दी|

गृहस्थी में रहने वाले एक बड़े अच्छे त्यागी पंडित थे| त्याग साधुओं का ठेका नहीं है| गृहस्थमें, साधुमें, सभी में त्याग हो सकता है| त्याग साधु वेष में ही हो; ऐसी बात नहीं है| पण्डित जी बड़े विचारवान थे| भागवत की कथा कहा करते थे|  एक धनी आदमी ने उनसे दीक्षा ली और कहा-‘महाराज! कोई सेवा बताओ|’

दुर्गादास था तो धनी किसान; किन्तु बहुत आलसी था| वह न अपने खेत देखने जाता था, न खलिहान| अपनी गाय-भैंसों की भी वह खोज-खबर नहीं रखता था| सब काम वह नौकरों पर छोड़ देता था|

एक धर्मात्मा ब्राह्मण थे, उनका नाम मांडव्य था| वे बड़े सदाचारी और तपोनिष्ठ थे| संसार के सुखों और भोगों से दूर वन में आश्रम बनाकर रहते थे| अपने आश्रम के द्वार पर बैठकर दोनों भुजाओं को ऊपर उठाकर तप करते थे| वन के कंद-मूल-फल खाते और तपमय जीवन व्यतीत करते| तप करने के कारण उनमें प्रचुर सहनशक्ति पैदा हो गई थी|

एक हाथी था| वह मर गया तो धर्मराज के यहाँ पहुँचा| धर्मराज ने उससे पूछा- ‘अरे! तुझे इतना बड़ा शरीर दिया, फिर भी तू मनुष्य के वश में हो गया! तेरे एक पैर जितना था मनुष्य, उसके वश में तू हो गया!’ वह हाथी बोला-‘महाराज! यह मनुष्य ऐसा ही है|

लक्ष्मीनारायण बहुत भोला लड़का था| वह प्रतिदिन रात में सोने से पहले अपनी दादी से कहानी सुनाने को कहता था| दादी उसे नागलोक, पाताल, गन्धर्वलोक, चन्द्रलोक, सूर्यलोक आदि की कहानियाँ सुनाया करती थी|

भगवान श्रीराम जब समुद्र पार कर लंका जाने के लिए समुद्र पर पुल बांधने में सलंग्न हुए, तब उन्होंने समस्त वानरों को संकेत दिया कि, ‘वानरो ! तुम पर्वतों से पर्वत खण्ड लाओ जिससे पुल का कार्य पूर्ण हो जाए|’ आज्ञा पाकर वानर दल भिन्न-भिन्न पर्वतों पर खण्ड लाने के लिए दौड़ पड़े और अनेक पर्वतों से बड़े-बड़े विशाल पर्वत खण्डों को लाने लगे| नल और नील जो इस दल में शिल्पकार थे, उन्होंने कार्य प्रारंभ कर दिया|

एक बार की बात है| बादशाह अकबर कहीं जंगल में शिकार के लिए गये| साथ में बहुत आदमी थे, पर दैवयोग से जंगल में अकेले भटक गये| आगे गये तो एक खेत दिखायी दिया| उस खेत में पहुँचे और उस खेत के मालिक से कहा-‘भैया! मुझे भूख और प्यास बड़ी जोर से लगी है|

काशी प्राचीन समय से प्रसिद्ध है| संस्कृत-विद्या का वह पुराना केंद्र है| उसे भगवान् विश्वनाथ की नगरी या विश्वनाथपुरी भी कहा जाता है| विश्वनाथ जी वहाँ बहुत प्राचीन मन्दिर है|