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बलसोरा के बादशाह का राज्य धनधान्य से पूर्ण था | किसी भी प्रकार की कोई कमी न थी | उनकी एक प्यारी-सी बेटी थी जिनी | उसके काले घुंघराले बाल, घनी पलकें, तीखे नयन-नक्श, हर किसी को अपनी ओर आकृष्ट करते रहते थे |

यह उन दिनों की बात है, जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका में थे। वहां कई महत्वपूर्ण जगहों पर उन्होंने व्याख्यान दिए। उनके व्याख्यानों का वहां जबर्दस्त असर हुआ। लोग स्वामी जी को सुनने और उनसे धर्म के विषय में अधिक अधिक से जानने को उत्सुक हो उठे। उनके धर्म संबंधी विचारों से प्रभावित होकर एक दिन एक अमेरिकी प्रोफेसर उनके पास पहुंचे। उन्होंने स्वामी जी को प्रणाम कर कहा, ‘स्वामी जी, आप मुझे अपने हिंदू धर्म में दीक्षित करने की कृपा करें।’

एक बार पोर्ट नदी के किनारे एक सुंदर राज्य बसा था | राज्य का नाम था लीगोलैंड | लीगोलैंड में इवानुश्का नाम का राजा राज्य करता था | राजा अपनी विद्वत्ता के लिए प्रसिद्ध था |

राजधानी लौटते समय मार्ग में राजा हरिश्चंद्र इस उधेड़-बुन में लगे हुए थे अपनी धर्मपत्नी शैव्या को अपने सर्वस्व दान  बात कैसे बताएंगे| उन्हें न तो स्वयं राज्य का लाभ था, न धन का लालच| परन्तु शैव्या और पुत्र रोहिताश्व की प्रतिक्रिया के बारे में वे अवश्य चिंतित थे|

एक गांव में रमीना अपने पति व चार बेटों के साथ रहती थी | वह अपने व अपने परिवार के साथ खूब खुशहाल थी | वह मध्यम आय वाला परिवार था | अत: रमीना परिवार की कमाई का अधिकांश भाग बच्चों की शिक्षा पर खर्च करती थी | पिता भी बच्चों को खूब प्यार करता था |

अगले दिन जैसे ही राजा हरिश्चंद्र राज्य दरबार में अपने सिंहासन पर बैठे, विश्वामित्र ने प्रवेश किया| राजा ने स्वयं महर्षिकी अगवानी की|सभासदों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया| विश्वामित्र ने कहा, “राजन! मुझे पहचाना?

बात तब की है, जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था। बंगाल के न्यायाधीश नीलमाधव बैनर्जी अपनी न्यायप्रियता, सत्यनिष्ठा व दयालुता के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। अपने जीवन काल में उन्होंने अपने इन्हीं गुणों के कारण बेहद सम्मान व प्रसिद्धि पाई। वृद्धावस्था में उन्हें प्राण घातक रोग ने जकड़ लिया तथा उनका शरीर बेहद कमजोर हो गया।