एकादशी माहात्म्य – फाल्गुन शुक्ला आमलकी एकादशी
मान्धाता बोले कि हे वशिष्ठजी! यदि आपकी मुझ पर कृपा है तो किसी ऐसे व्रत की कथा कहिये जिससे मेरा कल्याण हो|
मान्धाता बोले कि हे वशिष्ठजी! यदि आपकी मुझ पर कृपा है तो किसी ऐसे व्रत की कथा कहिये जिससे मेरा कल्याण हो|
धर्मराज युधिष्ठिर बोले-हे जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? सो सब कृपापूर्वक कहिये – श्री भगवान् बोले कि हे राजन्! फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है|
धर्मराज युधिष्ठिर बोले – हे भगवन्! आपने माघ के कृष्णपक्ष की षट्तिला एकादशी का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया| आप स्वेदज, अंडज, उद्भिज और जरायुज चारों प्रकार के जीवों के उत्पन्न, पालन तथा नाश करने वाले हैं|
एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा – हे महाराज! पृथ्वी लोक के मनुष्य ब्रह्मइत्यादि महान पाप करते हैं, पराये धन की चोरी तथा दूसरे की उन्नति को देखकर ईर्ष्या करते हैं, साथ ही अनेक प्रकार के व्यसनों में फँसे रहते हैं फिर भी उनको नर्क प्राप्त नहीं होता, इसका क्या कारण है?
युधिष्ठिर ने कहा – हे भगवन्! आपने सफला एकादशी का माहात्म्य विधिवत् बताकर बड़ी कृपा की| अब कृपा करके यह बतलाइये कि पौष शुक्ला एकादशी का क्या नाम है?
युधिष्ठिर ने प्रश्न किया – हे जनार्दन! पौष कृष्णा एकादशी का क्या नाम है और उस दिन किस देवता की पूजा की जाती है? भगवान् कहने लगे – हे धर्मराज! मैं तुम्हारे स्नेह के कारण तुमसे कहता हूँ कि एकादशी व्रत के अतिरिक्त मैं अधिक से अधिक दक्षिणा पाने वाले यज्ञ से भी प्रसन्न नहीं होता|
श्री युधिष्ठिर ने कहा कि भगवन्! आप तीनों लोकों के स्वामी, सबको सुख देने वाले और जगत् के पति हैं| मैं आपको नमस्कार करता हूँ|
सूतजी बोले – हे ऋषियों! इस व्रत का वृत्तान्त और उत्पत्ति प्राचीन काल में भगवान् कृष्ण ने अपने परम भक्त युधिष्ठिर से कही थी, वही सब मैं तुमसे कहता हूँ|
एकादशी व्रत का उद्यापन तब किया जाता है, जब व्रत रखने वाले श्रद्धालु, स्त्री-पुरुष कुछ समय तक नियमित या वर्षों तक निश्चित संख्या में नियमित व्रत करते हैं|
पूजन करने वाले स्त्री-पुरुष स्नान करके स्वच्छ पीले या सफेद रंग की धोती-दुपट्टा-यज्ञोपवीत धारण करें| पूजन प्रारम्भ करने से पहले अपना मुख पूर्व दिशा की ओर करके बैठना चाहिए|