आलस का नतीजा बुरा
किसी गांव में एक ब्राह्मण रहा करता था| वह बड़ा भला आदमी था, लेकिन साथ ही काम को टाला करता था| वह यह मानकर चलता था कि जो कुछ होता है, भाग्य से होता है, वह अपने हाथ-पैर नहीं हिलाता था|
किसी गांव में एक ब्राह्मण रहा करता था| वह बड़ा भला आदमी था, लेकिन साथ ही काम को टाला करता था| वह यह मानकर चलता था कि जो कुछ होता है, भाग्य से होता है, वह अपने हाथ-पैर नहीं हिलाता था|
राजकुमार सिद्धार्थ सुंदरी पत्नी यशोधरा, दूध पीते बालक राहुल और कपिलवस्तु का राजपाट त्यागकर तपस्या के लिए चल पड़े|
एक दार्शनिक ने पढ़ा- वास्तव में सौंदर्य ही विश्व की सबसे बड़ी विभूति है। भक्ति, ज्ञान, कर्म और उपासना आदि परमात्मा को पाने के तुच्छ मार्ग हैं। सही मार्ग तो सौंदर्य ही है।
कुंती यादवों के राजा कुंतीभोज की पुत्री थी| बाल्यावस्था से ही कुंती अपनी सुन्दरता, धर्म और सदाचार के लिए प्रसिद्ध थी| एक बार ऋषि दुर्वासा राजा कुंतीभोज के यहाँ रहने आये| वे एक वर्ष तक रहे| कुंती ने उनकी बहुत सेवा की| कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे एक मन्त्र सिखाया जिससे देवताओं का आह्वान हो सकता था|
हस्तिनापुर के राजभवन में कौरवो और पांडव राजकुमार एक साथ रहते थे| भीष्म और विदुर उनकी देखभाल किया करते थे| भीष्म की राजकुमारों को धनुर्विद्या का ज्ञान देने के लिए उपयुक्त शिक्षक की आवश्कता थी|
राजा त्रिशंकु के यज्ञ में आमंत्रण के अवसर पर वशिष्ठ पुत्र शक्ति और विश्वामित्र विवाद हो गया| विश्वामित्र ने शक्ति को शाप दे दिया और प्रेरणा से ‘रुधिर’ नामक राक्षस ने शक्ति ऋषि को खा लिया| महर्षि वशिष्ठ के दूसरे निन्यानबे पुत्रों को भी उसने खा डाला| महर्षि वशिष्ठ का एक पुत्र भी नही बचा|
एक स्त्री थी| उसकी आंखें चली गईं| पहले एक गई, फिर दूसरी| वह बहुत परेशान रहने लगी| पति अपनी अंधी पत्नी का बोझ कब तक उठाता! वह उससे अलग रहने लगा| उसकी छोटी लड़की ने भी उससे मुंह मोड़ लिया|
सऊदी अरब में बुखारी नामक एक विद्वान रहते थे। वह अपनी ईमानदारी के लिए मशहूर थे। एक बार वह समुद्री जहाज से लंबी यात्रा पर निकले। उन्होंने सफर के खर्च के लिए एक हजार दीनार अपनी पोटली में बांध कर रख लिए। यात्रा के दौरान बुखारी की पहचान दूसरे यात्रियों से हुई। बुखारी उन्हें ज्ञान की बातें बताते।
माद्री जी मृत्यु के पश्चात वन के ऋषि-मुनियों ने कुंती और पांडवों को हस्तिनापुर ले जाकर भीष्म को सौंप दिया| हस्तिनापुर एक सुन्दर प्रदेश था और पांडु-पुत्र वहां जाने के लिए उत्सुक थे|
शिलाद नाम के एक महामनस्वी ब्राह्मण थे| उन्होंने सत्पुत्र की प्राप्ति के लिए इंद्र की उपासना की| उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर इंद्र ने शिलाद से वर माँगने को कहा|