HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 67)

प्राचीन काल में हरिकेश नाम से विख्यात एक सौन्दर्यशाली यक्ष हुआ था, जो पूर्णभद्र का पुत्र था| हरिकेश महाप्रतापी, ब्राह्मण भक्त एवं धर्मात्मा था| जन्म से ही उसकी शंकरजी में प्रगाढ़ भक्ति थी|

दो मित्र थे, एक का नाम था अशोक और दूसरे का नाम पुनीत| एक दिन अशोक ने पुनीत को अपने घर खाना खाने बुलाया| उसने तरह-तरह की बढिया चीजें बनवाईं| पूड़ी-कचौड़ी, खीर आदि-आदि| जब दोनों खाना खा चुके तो अशोक ने पूछा – “पुनीत, खाना कैसा लगा?”

माहिष्मती के राजा कार्तवीर्य के सौ पुत्र थे| उनमें शूर, शूरसेन, कृष्ण, धृष्ण और जयध्वज नाम के पाँच पुत्र महारथी और मनस्वी थे| इनमें प्रथम चार रूद्र के भक्त एवं पाँचवाँ जयध्वज नारायण का भक्त था|

उन दिनों शिवाजी मुगल सेना से बचने के लिए वेश बदलकर रहते थे। इसी क्रम में एक दिन शिवाजी एक दरिद्र ब्राrाण के घर रुके। ब्राrाण का नाम विनायक देव था। वह अपनी मां के साथ रहता था। विनायक भिक्षावृत्ति कर अपना जीवन-यापन करता था। अति निर्धनता के बावजूद उसने शिवाजी का यथाशक्ति सत्कार किया।

राजा दुर्जय सभी शास्त्रों में निष्णात हो चुके थे और शत्रुओं को भी जीत लिये थे, किंतु अपनी इन्द्रियों पर विजय नहीं प्राप्त कर सके थे| जो मन से हार जाय उस पराक्रमी को पराक्रमी कैसे कहा जा सकता है?

भगवान बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तप में लगे थे। उन्होंने शरीर को काफी कष्ट दिया, यात्राएं कीं, घने जंगलों में कड़ी साधना की, पर आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। एक दिन निराश हो बुद्ध सोचने लगे- मैंने अभी तक कुछ भी प्राप्त नहीं किया।

खुदीराम बोस भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे| 19 वर्ष की अवस्था में ही अंग्रेजों पर हमला पहला बम फेंककर, हाथ में भगवद् गीता लेकर ‘वंदे मातरम्’ का नारा लगाते हुए फाँसी का फंदा चूम लिया था|