जब धारा ने नहीं मानी सखी की बात
नदी की अनेक धाराएं साथ-साथ बहती चली आ रही थीं। उन्हीं में से एक धारा अपने गतिशील जीवन से ऊबकर आगे न जाकर आम के वृक्षों की छाया तले विश्राम करना चाहती थी। तब एक अन्य धारा ने समझाया कि गतिशीलता में ही हमारी पवित्रता है।