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घने जंगल में एक पेड़ पर सोन चिड़िया रहती थी| जब वह गाना गाती थी तो उसकी चोंच से मोती झड़ते थे| एक दिन एक चिड़ीमार ने यह देख लिया| वह बड़ा प्रसन्न हुआ| उसने मन-ही-मन में सोचा, ‘वाह! आज तो मेरी किस्मत ही खुल गई| यदि मैं इस चिड़िया को पकड़ लूँ तो मुझे नित्य ही मोती प्राप्त होंगे| इस तरह मैं जल्दी ही धनवान बन जाऊँगा|’

इस्लाम के पैगंबर हजरत मुहम्मद जब अपनी इकलौती बेटी फातिमा की शादी के लिए तैयार हुए, तब उन्होंने अपने दामाद अली को बुलाया| अपने दामाद से उन्होंने पूछा- “बेटा तुम्हारे घर में कुछ खाने का सामान होगा?”

बादशाह अकबर ने दरबार में सवाल पूछा – “ठंड में हमें ठंड लगती है, गर्मी में गर्मी बेहाल कर देती है, वर्षा में चारों तरफ पानी-ही-पानी हो जाता है, तब कौन-सा मौसम अच्छा कहा जाएगा?”

गणेश जी विघ्न विनाशक व शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं। अगर कोई सच्चे मन से गणोश जी की वंदना करता है, तो गौरी नंदन तुरंत प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद प्रदान करते हैं। वैसे भी गणेश जी जिस स्थान पर निवास करते हैं, उनकी दोनों पत्नियां ऋद्धि तथा सिद्धि भी उनके साथ रहती हैं उनके दोनों पुत्र शुभ व लाभ का आगमन भी गणेश जी के साथ ही होता है। कभी-कभी तो भक्त भगवान को असमंजस में डाल देते हैं। पूजा-पाठ व भक्ति का जो वरदान मांगते हैं, वह निराला होता है।

विक्रमादित्य न्यायप्रिय और प्रजा प्रेमी राजा थे| इसलिए उनसे न्याय करवाने के लिए देवता भी स्वर्गलोक से धरती पर आया करते थे| एक बार उन्होंने नदी के तट पर एक महल बनाने का आदेश दिया|

एक निर्धन व्यक्ति था। वह नित्य भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करता। एक बार दीपावली के दिन भगवती लक्ष्मी की श्रद्धा-भक्ति से पूजा-अर्चना की। कहते हैं उसकी आराधना से लक्ष्मी प्रसन्न हुईं। वह उसके सामने प्रकट हुईं और उसे एक अंगूठी भेंट देकर अदृश्य हो गईं। अंगूठी सामान्य नहीं थी। उसे पहनकर जैसे ही अगले दिन उसने धन पाने की कामना की, उसके सामने धन का ढेर लग गया।

बादशाह अकबर ने सोचा कि बीरबल को कोई ऐसा काम करने को कहा जाए जिसे वह कर ही न सके| यही सोचकर उन्होंने बीरबल को दरबार में बुलाया और कहा – “बीरबल, वैद्यजी ने एक ओषधि बनाने के लिए बैल के दूध की मांग की है, अत: हमें कहीं से बैल का दूध ला दो|”

एक किसान के खेत में अनेक कौए आते थे और उसकी फसल नष्ट कर उड़ जाते थे| यह उनके नित्य का सिलसिला था| इससे किसान बहुत दुखी था| उसने खेत में कई बार कपड़े व फूस के पुतले (बिजूका) खड़े किए, लेकिन उन्होंने उन पुतलों को भी नष्ट कर डाला|