HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 153)

रमानाथ और दीनानाथ में गहरी दोस्ती थी| दोनों ही एक-दूसरे पर जान छिड़कने का दम भरा करते थे| एक दिन दोनों घने जंगल से होकर गुजर रहे थे कि मार्ग में उन्हें एक भालू आता दिखाई दिया| वह उनकी तरफ़ ही आ रहा था| रमानाथ तेजी से भागकर निकट के पेड़ पर चढ़ गया| उसने अपने मित्र दीनानाथ की तनिक भी चिंता नही की| वह बोला, ‘भाई दीनानाथ! जान है तो जहान है| तुम भी अपने बचाव का रास्ता खोजो|’

महर्षि भृगु ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे। उनकी पत्नी का नाम ख्याति था जो दक्ष की पुत्री थी। महर्षि भृगु सप्तर्षिमंडल के एक ऋषि हैं। सावन और भाद्रपद में वे भगवान सूर्य के रथ पर सवार रहते हैं।

बादशाह अकबर अक्सर दरबार में ठिठोली हेतु कोई-न-कोई सवाल पूछ लिया करते थे| एक बार उन्होंने पूछा कि कौन-सा शस्त्र सर्वश्रेष्ठ होता है?

एक बार वरुण के पुत्र भृगु के मन में परमात्मा को जानने की अभिलाषा जाग्रत हुई। उनके पिता वरुण ब्रम्ह निष्ठ योगी थे। अत: भृगु ने पिता से ही अपनी जिज्ञासा शांत करने का विचार किया। वे अपने पिता के पास जाकर बोले- ‘भगवन्!

बादशाह अकबर को किस्से-कहानियां सुनने का भी शौक था और वे अक्सर किसी-न-किसी दरबारी को कहानी सुनाने को कह देते थे| एक दिन दरबारियों ने बादशाह अकबर के कान भरे कि बीरबल को भी कई कहानियां आती हैं|

जोगे तथा भोगे दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किन्तु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी।

नंदन वन में वृक्ष पर चिड़ियों का एक जोड़ा सुखपूर्वक रहता था| समय बीतने के साथ चिड़िया ने अंडे दिए| चिड़िया दिनभर अंडो पर बैठकर उन्हें सेती थी और चिड़ा भोजन जुटाता था|