HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 134)

कृपाचार्य महर्षि शरद्वान के पुत्र थे| महर्षि शरद्वान महर्षि गौतम के पुत्र थे, इसी कारण इनको गौतम भी कहते थे| वे धनुर्विद्या में पूर्ण पारंगत थे| इंद्र भी इनकी असाधारण पटुता देखकर इनसे डरने लगा था|

बादशाह अकबर जंग में जाने की तैयारी कर रहे थे| फौज पूरी तरह तैयार थी| बादशाह भी अपने घोड़े पर सवार होकर आ गए| साथ में बीरबल भी था| बादशाह ने फौज को जंग के मैदान में कूच करने का निर्देश दिया|

एक राजा बेहद विलासी स्वभाव का था| उसे न प्रजा के सुख-दुख की चिंता थी और न राजकाज की| उसका सारा दिन अपने लिए सुख-सुविधाओं की व्यवस्था करने-करवाने में ही बीत जाता था| 

पहले महायुद्ध के दिनों की बात है| सन् 1918 के प्रारंभिक दिनों में उत्तराखंड-गढ़वाल में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा| कुछ समाचार पत्रों में उत्तराखंड-गढ़वाल में दुर्भिक्ष फैलने के समाचार प्रकाशित हुए|

अर्जुन कुंती का सबसे छोटा पुत्र था| इसके पिता का नाम पाण्डु था, लेकिन वास्तविक पिता तो इसका इंद्र था| पाण्डु रोगग्रस्त था और पुत्र पैदा करने की उसमें सामर्थ्य नहीं थी|

भीमसेन कुंती का दूसरा पुत्र था| इसका जन्म पवन देवता के संयोग से हुआ था, इसी कारण इसमें पवन की-सी शक्ति थी| इसके उदर में वृक नामक तीक्ष्ण अग्नि थी, इसीलिए इसका नाम वृकोदर भी पड़ा|

बादशाह अकबर और बीरबल बातें कर रहे थे| बात मियां-बीवी के रिश्ते पर चल निकली तो बीरबल ने कहा – “अधिकतर मर्द जोरू के गुलाम होते हैं और अपनी बीवी से डरते हैं|”

द्वापर नगर में द्रोण नामक एक दरीद्र ब्राह्मण रहता था| ब्राह्मण को भिक्षा अच्छी मिल जाती तो उसका सारा परिवार भरपेट भोजन करता और कम या कुछ न मिलने पर भूखे पेट सोना पड़ता| उसने या उसके परिजनों ने न कभी अच्छे वस्त्र पहने थे और न कभी बढ़या भोजन ही किया था|

युधिष्ठिर पांडु का ज्येष्ठ पुत्र था| धर्मराज द्वारा कुंती के आह्वान पर बुलाए जाने पर उनके अंश से ही यह पैदा हुआ था, इसलिए धर्म और न्याय इसके चरित्र में कूट-कूटकर भरा था| इसी के कारण इसको धर्मराज युधिष्ठिर पुकारा जाता था| वह कभी असत्य नहीं बोलता था, तभी शत्रु पक्ष के लोग भी उनकी बात पर पूरा विश्वास करते थे| स्वार्थ के कारण किसी प्रकार अनुचित कार्य करना इनको नहीं सुहाता था|