‘प्रभु कार्य’ करने का ‘सुअवसर’ आया है!
(1) प्रभु कार्य करने का ‘सुअवसर’ आया है:
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार परमात्मा ने दो प्रकार की योनियाँ बनाई हैं। पहली ‘मनुष्य योनि’ एवं दूसरी ‘पशु योनि’। चैरासी लाख ‘‘विचार रहित पशु योनियों’ में जन्म लेेने के पश्चात् ही परमात्मा कृपा करके मनुष्य को ‘‘विचारवान मानव की योनि’’ देता है। इस मानव जीवन की योनि में मनुष्य या तो अपनी विचारवान बुद्धि का उपयोग करके व नौकरी या व्यवसाय के द्वारा या तो अपनी आत्मा को पवित्र बनाकर परमात्मा की निकटता प्राप्त कर ले अन्यथा उसे पुनः 84 लाख पशु योनियों में जन्म लेना पड़ता हैं। इसी क्रम में बार-बार मानव जन्म मिलने पर भी मनुष्य जब तक अपनी ‘विचारवान बुद्धि’ के द्वारा अपनी आत्मा को स्वयं पवित्र नहीं बनाता तब तक उसे बार-बार 84 लाख पशु योनियों में ही जन्म लेना पड़ता हैं और यह क्रम अनन्त काल तक निरन्तर चलता रहता हैं। केवल मनुष्य ही अपनी आत्मा का विकास कर सकता है पशु नहीं। जो व्यक्ति प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान जाता है फिर उसे धरती, आकाश तथा पाताल की कोई शक्ति प्रभु कार्य करने से नहीं रोक सकती। सुनो अरे! युग का आवाहन, करलो प्रभु का काज। अपना देश बनेगा सारी, दुनिया का संकटहार।