दो गधों का भार (बादशाह अकबर और बीरबल)
बादशाह अकबर अपने पुत्र सलीम तथा बीरबल के साथ नगर भ्रमण कर रहे थे| चलते-चलते अकबर ने अपनी भारी अचकन उतार कर बीरबल को पकड़ा दी| थोड़ी देर बाद सलीम ने भी वैसा ही किया|
बादशाह अकबर अपने पुत्र सलीम तथा बीरबल के साथ नगर भ्रमण कर रहे थे| चलते-चलते अकबर ने अपनी भारी अचकन उतार कर बीरबल को पकड़ा दी| थोड़ी देर बाद सलीम ने भी वैसा ही किया|
पुराने जमाने में तातार देश के समीपवर्ती नगर काशनगर में एक दर्जी रहता था जो अपनी दुकान में बैठकर कपड़े सीता था| एक दिन वह अपनी दुकान पर काम कर रहा था कि एक कुबड़ा एक दफ्म (बड़ी खंजरी जैसा बाजा) लेकर आया और उसकी दुकान के नीचे बैठकर गाने लगा| दर्जी उसका गाना सुनकर बहुत खुश हुआ|
मैं मिस्त्र की राजधानी काहिरा का निवासी हूँ| मेरा बाप दलाल था| उसके पास काफ़ी पैसा हो गया| उसके मरने के बाद मैंने भी वही व्यापार आरंभ किया| एक दिन मैं अनाज की मंडी में अपने दैनिक व्यापार के लिए गया तो मुझे अच्छे कपड़े पहने एक आदमी मिला| उसने मुझे थोड़े-से तिल दिखाकर पूछा, “ऐसे तिल क्या भाव बिकते है?”
एक महात्मा हिमालय में रहते थे| वे हमेशा प्रभु का ध्यान करते रहते थे और दर्शननार्थियों को उपदेश दिया करते थे| एक दिन पढ़े-लिखे लोगों की एक टोली उनके पास पहुंची उन्होंने कहा – “महाराज, हम दुनिया को नहीं छोड़ना चाहते| उसी में रहकर आत्मिक उन्नति करना चाहते हैं| कोई उपाय बताइए|”
‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ और हम इसे लेकर रहेंगे- का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक बाल्यावस्था से ही कुछ उच्च सद्गुणी- सत्य भाषण एवं अदभूत साहस से परिपूर्ण थे|
बादशाह अकबर को यह मालूम था कि आम बीरबल का प्रिय फल है| एक दिन जब वह सरोवर में नहा रहे थे तो उन्होंने बीरबल पर व्यंग्य करते हुए कहा – “बीरबल, तुम्हें मालूम है कि गधे आम नहीं खाते और ऐसे फल को तुम पसंद करते हो|”
मिस्त्र देश में एक बड़ा प्रतापी और न्यायप्रिय बादशाह था| वह इतना शक्तिशाली था की आस-पड़ोस के राजा उससे डरते थे| उसका मंत्री बड़ा कुशल, न्यायप्रिय और काव्य आदि कई-कई कलाओं और विद्याओं में पारंगत था| मंत्री के दो सुंदर पुत्र थे, जो उसी की भाँति गुणवान थे| बड़े का नाम शमसुद्दीन मुहम्मद था और छोटे का नाम नूरुद्दीन अली|
किसी गांव में एक किसान रहता था| उसकी थोड़ी-सी खेती-बाड़ी थी| उससे उसे जो कुछ मिल जाता, उसी से वह अपनी छोटी-सी गृहस्थी की गुजर-बसर कर लेता था| कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता था|