परलोक को न बिगड़ने दें
एक बार सप्तर्षिगण सनातन ब्रम्हालोक पर विजय प्राप्त करने की इच्छा से तीर्थों में विचर रहे थे| इसी बीच भयानक अकाल पड़ गया| जानता को अन्न के लिये कष्ट होने लगा|
एक बार सप्तर्षिगण सनातन ब्रम्हालोक पर विजय प्राप्त करने की इच्छा से तीर्थों में विचर रहे थे| इसी बीच भयानक अकाल पड़ गया| जानता को अन्न के लिये कष्ट होने लगा|
एक बहुत बड़ी संत थीं| उनका नाम था राबिया| वे सादगी से रहती थीं और हर घड़ी अल्लाह का नाम लेती रहती थीं| उनकी कुटिया में साधु-संतों की भीड़ लगी रहती थी|
गांधीजी के आश्रम में अनेक लोग सेवा कार्य हेतु आते थे। एक दिन एक संन्यासी उस आश्रम में पहुंचा और सेवा करने की इच्छा जताई। गांधीजी ने गेरुए वस्त्र त्यागने की बात उससे कही तो वह नाराज हो गया। तब गांधीजी ने उसे समझाइश दी।
एक बार ग्वालों ने गोचर-भूमि और जल की सुविधा देखकर सरस्वती नदी के आस-पास डेरा डाल दिया| उनके पास गायों का एक बहुत बड़ा झुंड था|
एक आदमी बड़ा शराबी था| शाम होते ही वह शराब घर में पहुंच जाता और खूब शराब पीता| एक दिन उसने इतनी शराब पी कि चलते समय उसे पूरा होश न रहा| वह साथ में लालटेन लाया था|
महाराष्ट्र में एक बहुत बड़े संत हुए हैं| उनका नाम था एकनाथ| वह सबसे प्रेम करते थे| कभी गुस्सा नहीं होते थे| एक दिन वह पूजा कर रहे थे कि एक आदमी उनकी गोद में आ बैठा| एकनाथ से प्रसन्न होकर कहा – “वाह! तुम्हारे प्रेम से मुझे बहुत ही आनंद मिला है|”
यह घटना मुगलकाल की है| एक बार मुगल बादशाह शाहजहाँ की बेटी सख्त बीमार हुई| राजदरबार के वैधों और हकीमों का सब तरह का इलाज कराया गया, परंतु शहज़ादी सब तरह की चिकित्सा के बावजूद भी ठीक नहीं हुई|
एक दिन कंजूस सेठ को न जाने क्या हुआ, उसने एक साधु की झोली में एक पैसा डाल दिया। शाम को साधु द्वारा दिए गए प्रसाद के दोने में उसे अशर्फी मिली। वह पछताने लगा कि ज्यादा पैसे देता तो और ज्यादा अशर्फियां उसे मिलतीं।