एक शहर में चार साधु
एक शहर में चार साधु आये| एक साधु शहर के चौराहे में जाकर बैठ गया, एक घण्टाघर में जाकर बैठ गया, एक कचहरी में जाकर बैठ गया और एक श्मशान में जाकर बैठ गया|
एक शहर में चार साधु आये| एक साधु शहर के चौराहे में जाकर बैठ गया, एक घण्टाघर में जाकर बैठ गया, एक कचहरी में जाकर बैठ गया और एक श्मशान में जाकर बैठ गया|
एक गरीब आदमी बेवजह घूमता हुआ एक कस्बे में पहुँचा| वह बहुत मरियल सा हो गया था क्योंकि कई दिनों से उसे खाने के लिये कुछ नहीं मिला था| उसे आशा थी कि कस्बे में उसे खाने के लिए कुछ-न-कुछ मिल ही जायेगा वरना भूख से उसकी मौत निश्चित थी|
जब पाण्डव तथा कौरव राजकुमारों की शिक्षा पूर्ण हो गई तो उन्होंने द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा देना चाहा। द्रोणाचार्य को द्रुपद के द्वारा किये गये अपने अपमान का स्मरण हो आया और उन्होंने राजकुमारों से कहा, “राजकुमारों! यदि तुम गुरुदक्षिणा देना ही चाहते हो तो पाञ्चाल नरेश द्रुपद को बन्दी बना कर मेरे समक्ष प्रस्तुत करो। यही तुम लोगों की गुरुदक्षिणा होगी।” गुरुदेव के इस प्रकार कहने पर समस्त राजकुमार अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र ले कर पाञ्चाल देश की ओर चले।
भगवान सूर्यदेव की पत्नी का नाम छाया था । उसकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ । यमुना अपने भाई यमराज से बडा स्नेह करती थी । वह उससे बराबर निवेदन करती है वह उसके घर आकर भोजन करें ।
विष्णु कांची में दामोदर नामक एक गरीब ब्राह्मण रहते थे| जब उनका विवाह हुआ, तब उन्होंने अपनी स्त्री से कह दिया कि देखो, अब मैं गृहस्थ बन गया हूँ| गृहस्थ का खास काम है-अतिथि-सत्कार करना|
एक बार की बात है कि वर्षाकाल आरम्भ होने पर अपना चातुर्मास्य करने के उद्देश्यय से मैंने किसी ग्राम के एक ब्राह्मण से स्थान देने का आग्रह किया था| उसने मेरी प्रार्थना को स्वीकार किया और मैं उस स्थान पर रहता हुआ अपनी व्रतोपसाना करता रहा|
एक समय था जब राजा-महाराजाओं को पक्षी पालने का शौक होता था| ऐसे ही एक राजा के पास कई सुंदर पक्षी थे| उनमें से एक चकोर राजा को अति प्रिय था और वह जहाँ भी जाता उसे जरुर साथ ले जाता था|
मद्र देश के राजा अश्वपति ने पत्नि सहित सन्तान के लिये सावित्री देवी का विधि पूर्वक व्रत तथा पूजन करके पुत्री होने पर वर प्राप्त किया । सर्वगुण देवी सावित्री ने पुत्री के रूप में अश्वपति के घर कन्या के रूप मे जन्म लिया ।
मुकुन्ददास नामक एक व्यक्ति किसी अच्छे सन्त का शिष्य था| वे सन्त जब भी उसको अपने पास आने के लिये कहते, वह यही कहता कि मेरे बिना मेरे स्त्री-पुत्र रह नहीं सकेंगे| वे सब मेरे ही सहारे बैठे हुए हैं| मेरे बिना उनका निर्वाह कैसे होगा? सन्त ने कहते कि भाई! यह तुम्हारा वहम है, ऐसी बात है नहीं|
पुराने समय में एक राजा के कोई सन्तान नही थी । राजा रानी सन्तान के न होने पर बडे दःखी थे एक दिन रानी ने गाज माता से प्रार्थना की कि अगर मेरे गर्भ रह जाये तो मैं तुम्हारे हलवे की कडाही करूँगी ।