बन्दर का कलेजा
किसी नदी के किनारे एक बहुत बड़ा पेड़ था| उस पर एक बन्दर रहता था| उस पेड़ पर बड़े मीठे-रसीले फल लगाते थे| बन्दर उन्हें भर पेट खाता और मौज उड़ाता| वह अकेला ही मजे में दिन गुजार रहा था|
किसी नदी के किनारे एक बहुत बड़ा पेड़ था| उस पर एक बन्दर रहता था| उस पेड़ पर बड़े मीठे-रसीले फल लगाते थे| बन्दर उन्हें भर पेट खाता और मौज उड़ाता| वह अकेला ही मजे में दिन गुजार रहा था|
प्रायः देखा गया है कि जानवरों में कुत्ता सबसे ज्यादा लालची होता है| वह रोटी के टुकड़े के लिए एक द्वार से दूसरे द्वार पर भटकता रहता था| उसको भर पेट भोजन कभी नहीं मिलता था| अपितु कभी-कभी डंडे भी खाने पड़ते थे|
कहते हैं कि राजा बलि के कारागर में श्री लक्ष्मी जी सब देवताओं के साथ बंधन में थीं। आज के दिन ही कार्तिक कृष्ण अमावस्या को भगवान विष्णु जी ने वामन अवतार धारण कर उन सबको बंधन से छुड़ाया था। बंधन मुक्त होते ही सभी देवता भगवती श्री लक्ष्मी जी के साथ क्षीर-सागर में जाकर सो गए थे।
बद्रीनारायण में एक साधु की अँगुली में पीड़ा हो गयी| किसी ने कहा कि यहाँ अस्पताल है, जहाँ मुफ्त में इलाज होता है| आप वहाँ जाकर पट्टी बँधवा लें| उस साधु ने उत्तर दिया कि अँगुली की पीड़ा तो मैं सह लूँगा, पर मैं किसी को पट्टी बाँधने के लिये कहूँ-यह पीड़ा मेरे से सही नहीं जाती!
एक बार की बात है| किसी जंगल में एक लोमड़ी रहती थी| वह बहुत चालाक थी| एक दिन उस लोमड़ी को बड़ी तेज भूख लगी|
इसी दिन समुद्र मंथन के समय क्षीर सागर से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं और भगवान विष्णु को अपना पति स्वीकार किया था। कथा इस प्रकार है-
एक राजा था| उसकी कोई सन्तान नहीं थी| एक बार नगर में एक अच्छे सन्त आये| राजा उनके पास गया और सन्तान के लिये प्रार्थना की| सन्त ने कहा कि राजन! तुम्हारे प्रारब्ध में सन्तान लिखी नहीं है|
एक वन में खरगोश और कछुआ रहते थे| दोनों गहरे मित्र थे| एक दिन वे सैर के लिए निकले| खरगोश तेज चलता और कछुआ धीरे-धीरे| खरगोश को कछुए की चाल पर हँसी आ गई| वह बोला, क्या तुम बीमार हो जो चींटी की चाल चल रहे हो| आओ मेरे साथ दौड़ का मुकाबला करो|
जब श्रीरामचंद्र जी लंका से वापस आए तो इसी अमावस्या को उनका राजतिलक किया गया था। अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्र थे- राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। श्रीराम को उनकी माता कैकेयी की माँग पर राजा ने १४ वर्ष का वनवास दिया।
एक सेठ था| वह बहुत ईमानदार तथा धार्मिक प्रवृत्तिवाला था| एक दिन उसके यहाँ एक बूढ़े पण्डित जी आये| उनको देखकर सेठ की उनपर श्रद्धा हो गयी|