बादशाह का गुस्सा (बादशाह अकबर और बीरबल)
बादशाह अकबर अपनी बेगम से किसी बात पर नाराज हो गए| नाराजगी इतनी बढ़ गई कि उन्होंने बेगम को मायके जाने को कह दिया| बेगम ने सोचा कि शायद बादशाह ने गुस्से में ऐसा कहा है, इसलिए वह मायके नहीं गई|
बादशाह अकबर अपनी बेगम से किसी बात पर नाराज हो गए| नाराजगी इतनी बढ़ गई कि उन्होंने बेगम को मायके जाने को कह दिया| बेगम ने सोचा कि शायद बादशाह ने गुस्से में ऐसा कहा है, इसलिए वह मायके नहीं गई|
एक कुम्हार के पास कई गधे थे| रोज़ सुबह जब वह गधों को मिट्टी लाने के लिए ले जाता तो एक जगह कुछ देर के लिए आराम करता था| वह सभी गधों को पेड़ से बाँध देता और खुद भी एक पेड़ के नीचे लेट जाता|
अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र था| कृपी उसकी माता थी| पैदा होते ही वह अश्व की भांति रोया था| इसलिए अश्व की भांति स्थाम (शब्द) करने के कारण उसका नाम अश्वत्थामा पड़ा था| वह बहुत ही क्रूर और दुष्ट बुद्धि वाला था| तभी पिता का उसके प्रति अधिक स्नेह नहीं था|धर्म और न्याय के प्रति उसके हृदय में सभी प्रेरणा नहीं होती थी और न वह किसी प्रकार का आततायीपन करने में हिचकता था|
बादशाह अकबर के दरबारियों को अक्सर यह शिकायत रहती थी कि बादशाह हमेशा बीरबल को ही बुद्धिमान बताते हैं, औरों को नहीं|
दूसरे महायुद्ध की विभीषिका के फलस्वरुप जापान क्षत-विक्षत हो गया था| उसका समस्त व्यापार, उधोग, कृषि एवं अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई थी|
कृपी महर्षि शरद्वान की पुत्री थी| इनकी माता जानपदी नाम की एक देवकन्या थी| कृपी का जीवन सदा दुर्भाग्य और आपत्तियों से संघर्ष करते हुए ही बीता|
अकबर बादशाह को मजाक करने की आदत थी| एक दिन उन्होंने नगर के सेठों से कहा – “आज से तुम लोगों को पहरेदारी करनी पड़ेगी|”
एक राज था| उसने एक भव्य और मज़बूत महल का निर्माण कराया| सभी ने उस महल की खूब प्रशंसा की| एक बार एक संत-महात्मा राजा के उस महल में आए| राजा ने महात्मा की खूब सेवा-टहल की| उन्हें अपना पूरा महल दिखाया|
गुरु द्रोणाचार्य ब्राह्मण थे, धनुर्विद्या के महान आचार्य थे, पर बड़े गरीब थे| इतने गरीब थे कि जीवन का निर्वाह होना कठिन था| घर में कुल तीन प्राणी थे – द्रोणाचार्य स्वयं, उनकी पत्नी और उनका पुत्र अश्वत्थामा| पुत्र की अवस्था पांच-छ: वर्ष की थी|
तानसेन और बीरबल में किसी बात को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया| दोनों ही अपनी-अपनी बात पर अटल थे| हल निकलता न देख दोनों बादशाह की शरण में गए| बादशाह अकबर को अपने दोनों रत्न प्रिय थे| वे किसी को भी नाराज नहीं करना चाहते थे, अत: उन्होंने स्वयं फैसला न देकर किसी और से फैसला कराने की राय दी|