HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 104)

रायचंद जवाहरात के बहुत बड़े व्यापारी थे। उनकी ईमानदारी प्रसिद्ध थी। अपने व्यापार में वह किसी प्रकार की अनीति नहीं करते थे। वह दूसरे व्यापारियों के हितों का भी ध्यान रखते थे। एक बार उन्होंने किसी व्यापारी से जवाहरात का सौदा किया। उसका भाव तय हो गया और यह भी तय हो गया कि अमुक समय के भीतर उस आदेश की पूर्ति होगी।

प्राचीन काल में पाटलिपुत्र में वररुचि नाम का एक विद्वान ब्राह्मण युवक रहता था| वह भगवान शिव का परम भक्त था और प्रतिदिन नियमपूर्वक भगवान शिव के मंदिर में जाकर उनकी आराधना किया करता था|

एक बार काशी के निकट के एक इलाके के नवाब ने गुरु नानक से पूछा, ‘आपके प्रवचन का महत्व ज्यादा है या हमारी दौलत का?‘ नानक ने कहा, ‘इसका जवाब उचित समय पर दूंगा।’ कुछ समय बाद नानक ने नवाब को काशी के अस्सी घाट पर एक सौ स्वर्ण मुद्राएं लेकर आने को कहा। नानक वहां प्रवचन कर रहे थे।

जब एक चीनी यात्री भारत से वापस जा रहा था, उसे उपहारस्वरूप भोजपत्र पर लिखी हजारों पुस्तकें भेट की गयी| एक छोटे जहाज पर उसे लाद दिया गया| जहाजियों के अतिरिक्त भारत के पन्द्रह युवा तपस्वी भी जा रहे थे, जिन्होंने अभी-अभी अपनी शिक्षा पूरी की थी|

यह कहानी उस समय की है, जब अयोध्या में राजा वीरकेतु का शासन था| राजा वीरकेतु बहुत योग्य प्रशासक थे| उनके राज्य में प्रजा स्वयं को सुखी एवं सुरक्षित महसूस करती थी|

एक बार ब्रह्माजी दुविधा में पड़ गए। लोगों की बढ़ती साधना वृत्ति से वह प्रसन्न तो थे पर इससे उन्हें व्यावहारिक मुश्किलें आ रही थीं।

एक बार श्रीकृष्ण विदुर से मिलने हस्तिनापुर गये| विदुर घर में थे नहीं| उनकी पत्नी थी| कृष्ण ने चरण छुए| वे गद्गद् विह्वल हो गयी| उन्हें कुछ सुझा नहीं कि वे क्या करे? कहाँ बैठावें? वे तेजी से अन्दर गयीं| झटपट कुछ केले लेकर लौटीं|

प्राचीन समय में सिंहल द्वीप में सिंह विक्रम नाम का एक चोर रहता था| दूसरों का धन चुराना ही उसकी आजीविका थी| इस प्रकार लोगों के यहां चोरी करके उसके बहुत-सा धन इकट्ठा कर लिया था|

एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ किसी पर्वतीय स्थल पर ठहरे थे। शाम के समय वह अपने एक शिष्य के साथ भ्रमण के लिए निकले। दोनों प्रकृति के मोहक दृश्य का आनंद ले रहे थे। विशाल और मजबूत चट्टानों को देख शिष्य के भीतर उत्सुकता जागी। उसने पूछा, ‘इन चट्टानों पर तो किसी का शासन नहीं होगा क्योंकि ये अटल, अविचल और कठोर हैं।’ शिष्य की बात सुनकर बुद्ध बोले, ‘नहीं, इन शक्तिशाली चट्टानों पर भी किसी का शासन है।