श्रावण मास माहात्म्य – शिव पंचाक्षरी मंत्र साधना
‘नमः शिवाय’ मंत्र बहुत ही सीधा, सरल एवं सर्वगम्य यह मंत्र तेजस्वी एवं अत्यधिक प्रभावयुक्त क्रम में है| हमारे पूर्वज मंत्रों व साधारण बोलचाल में आने वाले शब्दों में भेद नहीं कर पाए, इसी का परिणाम है कि इन मंत्रों के रहस्य से हम हीन होकर क्षीण हो गए| कुछ जो हमारे उदात्त ऋषि हुए हैं, अपने मंत्रमय स्वरूप को पहचानकर अद्वितीय कहे गए हैं, वे सभी इस पंचाक्षर मंत्र की विशेषता से प्रभावित हैं|
यह पंचाक्षर मंत्र अल्पाक्षर होते हुए भी अपने गहनतम अर्थों को समाहित किए हुए हैं| जो जन्म-मृत्यु से रहित है जिसका कभी भी क्षय नहीं होता, सभी देव जिसे नमन करते हैं| गहनतम ध्यान में मग्न सभी पापों को हरण करने वाले, जिससे परे और कुछ भी नहीं है, सभी शास्त्रों का एक मात्र विषय, सर्वाभूषण, नीलकंठ जो सर्वत्र व्याप्त हैं, जो सर्वगुरु हैं वह शिव हैं|
पुराणों के अनुसार पुण्य-काल में वेदों एवं शास्त्रों की समस्त शक्ति इस पंचाक्षर मंत्र में समाहित होकर रहती है| पुनः सृष्टि-क्रम की दशा में नाभि-कमल से उत्पन्न ब्रह्मा ने सृष्टि रचना काल, जिज्ञासावश भगवान नारायण से प्रार्थना की तो उन्होंने इस ‘पन्चक्षरी मंत्र’ का उपदेश दिया गया तथा भगवान ने इस मंत्र के विशेष रहस्यों से ब्रह्मा को अवगत कराया| फिर ब्रह्मा ने विशेष सिद्धि लाभ के लिए इसी मंत्र के द्वारा घोर तपस्या की तथा सृष्टि निर्माण में समर्थ हुए| तदन्तर अन्य ऋषिगण भी इस मंत्र की महत्ता को ब्रह्मा से प्राप्त करके प्रभावित हुए| पंचाक्षर मंत्र की सिद्धता के बाद और किसी मंत्र या साधना की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती, क्योंकि शिव ही साक्षात परब्रह्म हैं, वही परमानंद हैं, वही ज्ञान स्वरूप हैं| भगवान शंकर को प्रसन्न करने का यह पंचाक्षर मंत्र उत्तम साधन बताया गया है| इस प्रकार ‘नम शिवाय’ इस पंचाक्षर मंत्र की साधना प्रत्येक मनुष्य को यथानुकूल करनी ही चाहिए|
इस साधना के लिए सवा लाख मंत्र जाप करना चाहिए| जब भी साधना करनी हो साधक प्रातःकाल उठकर स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर सात्विक एवं श्रद्धामय होकर साधना कक्ष में प्रवेश करें तथा सफेद या पीले रंग की धोती पहनकर, पीले आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठ जाएं| अपने सामने तांबे या स्टील की थाली में ‘पारदेश्वर शिवलिंग’ स्थापित करें| गंगाजल या शुद्ध जल के छींटे देकर किसी साफ वस्त्र से पोंछ दें तथा बाद में चंदन का तिलक लगाकर पुष्प चढ़ाएं| धूप, दीप, दिखाकर मिठाई का भोग लगाएं| मंत्र पूजा के बाद विनियाग करें, दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न संदर्भ पढ़ें बाद में इस जल को भूमि पर छोड़ दें|
अस्य श्री शिव मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि अनुष्टुप छंदः श्री सदाशिव देव शक्तिम ‘म’ कीलकम ‘शिवाय’ बीजम् सदाशिव प्रीत्यर्थ जपे विनियोग|
इसके बाद साशक करन्यास तथा हृदयादिन्यास करें|
करन्यास
(न) अंगुष्ठाभ्यां नमः|
(मः) तर्जनीभ्यां स्वाहा|
(शि) मध्यामाभ्यां वषट|
(वा) अमामिकाभ्यां हूं|
(य) कनिष्ठिकाभ्यां वौषट|
हृदयशक्ति न्यास
(न) हृदयाय नमः|
(मः) शिरसे स्वाहा|
(शि) शिखायै वषट
(वा) कवचाय हूं
(या) नेत्रत्रयाय वौषट
‘ॐ नमः शिवाय’ अनादि शक्तये अस्त्राय फट|
ध्यान
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारं सारं भुजगेंद्रहारं|
सदावसन्तं हृदयारविंदे भवं भवानी सहितं नमामि|
इसके बाद स्फटिक माला से जाप प्रारम्भ करें| सवा लाख मंत्र जप पूर्ण होने के बाद दशांश हवन करके साधना पूरी करें| इस साधना की पूर्णता पर साधक को रोगनिवृत्ति, सौभाग्य की प्राप्ति तथा सुख एवं सम्पत्ति का लाभ होगा| साधना की समाप्ति पर शिवलिंग पूजा स्थान में स्थापित दें| और माला शिव मंदिर में शिवलिंग पर अर्पित कर दें|